
राग द्वेष हीन अहंकार विहीन हूँ,
सहज सरल जीवन में अभिभूत हूँ,
संत औ असंतन सबको नमन है,
जीव चराचर के प्रेम का उपवन हूँ।
मानवीय मर्यादा का क़ायल हूँ,
यश अपयश की सोच से परे हूँ,
धन-वैभव, सुख-दुख लालसा,
काम क्रोध मद लोभ से रहित हूँ।
संस्कारी सनातन में पला बढ़ा,
पारिवारिक अनुशासन में सदा,
श्रम, शिक्षा, वैचारिकता सृजन,
पीढ़ी दर पीढ़ी का एक अवलंबन।
निंदा प्रशंसा की कोई परवाह नहीं,
कर्तव्यपरायणता, केवल चाह रही,
तन मन से ईश्वर में आस्था विश्वास
आजीवन धर्मपरायणता की आस।
देश समाज का गौरव निर्मित हो,
जन मानस की आशा परिपूर्ण हो,
सब सुखी स्वस्थ संपन्न प्रसन्न हों,
परिश्रमरत सद्चरित्र व सद्गुणी हों।
स्नेह सबसे ईर्ष्या किसी से नहीं,
सरलतम जीवन शौक़ कोई नहीं,
आदित्य प्रयास है सामंजस्य का,
सबके हित स्वार्थ की भावना का।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
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