June 21, 2025

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले तेज हुआ सियासी घमासान, तेजस्वी यादव के ‘पॉकेटमार’ बयान पर गरमाई राजनीति

पटना(राष्ट्र की परम्परा डेस्क) बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे सियासी बयानबाजी भी तीखी होती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बिहार दौरे के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस बीच, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के एक बयान ने सियासी बवंडर खड़ा कर दिया है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को ‘पॉकेटमार’ कहकर कटघरे में खड़ा किया, जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने तीखी प्रतिक्रिया दी।

तेजस्वी ने सिवान में पीएम मोदी की रैली के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमें पॉकेटमार प्रधानमंत्री नहीं चाहिए। रैली में भीड़ जुटाने के लिए प्रशासन और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया गया। सरकारी पैसे से आयोजन कराया गया, जो जनता की गाढ़ी कमाई की पॉकेटमारी है।”

तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि, “हम ऐसा मुख्यमंत्री भी नहीं चाहते जो होश में न हों।”

इस बयान पर एनडीए खेमा बिफर पड़ा है। भाजपा और जदयू नेताओं ने इसे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का सीधा अपमान बताया है। उन्होंने तेजस्वी से माफी की मांग करते हुए कहा कि ऐसे शब्द लोकतंत्र में शोभा नहीं देते।

इसी बीच पटना के प्रमुख चौराहों पर एनडीए समर्थकों द्वारा लगाए गए एक विवादास्पद पोस्टर ने लोगों का ध्यान खींचा है। पोस्टर में लालू यादव और तेजस्वी यादव का कार्टून है, जिसमें हाथ में लालटेन लिए भैंस पर बैठे हैं और लिखा है – “मेरा बाप चोर है, मुझे वोट दो।” राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के निजी हमले और पोस्टर वार आगामी चुनाव में मतदाताओं की धारणा को प्रभावित कर सकते हैं।

भाजपा नेताओं ने इस विवाद को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने तेजस्वी यादव को निशाने पर लेते हुए कहा कि वह अपने बयानों से बिहार की राजनीतिक गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं। वहीं आरजेडी का कहना है कि वे जनता के पैसे की बर्बादी के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे।

विश्लेषकों के अनुसार, जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, राजनीतिक दलों के बीच यह जुबानी जंग और अधिक तेज होगी। संसद का आगामी मानसून सत्र भी इन आरोप-प्रत्यारोपों से अछूता नहीं रहेगा।

बिहार की राजनीति एक बार फिर ऐसे मोड़ पर है, जहां मुद्दों से ज्यादा शब्दों की गर्मी सियासी फिजा को गरमा रही है। देखना होगा कि जनता इन जुबानी जंगों को किस तरह से लेती है – मनोरंजन के रूप में या राजनीतिक भविष्य तय करने वाले संकेत के रूप में।