✍️ डॉ. सतीश पाण्डेय
महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। उत्तर प्रदेश में चुनावी हलचल ने इस समय राजनीतिक तापमान को चरम पर पहुंंचा दिया है। चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियां धारदार करना शुरू कर दिया है, जिससे प्रदेश की सियासत में अचानक नए समीकरण और तेज मोर्चाबंदी देखने को मिल रही है।
यही वजह है कि पूरे प्रदेश में राजनीति एक बार फिर बड़े बदलावों की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। सत्ताधारी दल विकास, कानून व्यवस्था और कल्याणकारी योजनाओं को प्रमुख आधार बनाकर जनता के बीच उतर रहा है। दूसरी ओर विपक्ष बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने में जुटा है। प्रदेश की जनता किन मुद्दों को तरजीह देती है—इस पर सभी दलों की नज़रें टिकी हैं।
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इस बार छोटे और क्षेत्रीय दलों की सक्रियता भी खास तौर पर बढ़ी है। कई दल अपनी प्रभाव वाली सीटों पर चुनावी समीकरण बदलने की क्षमता रखते हैं, जिसके कारण बड़ी पार्टियाँ भी गठबंधन और सीट बंटवारे पर गंभीर मंथन कर रही हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वर्तमान परिदृश्य बहुकोणीय मुकाबले की ओर इशारा कर रहा है, जहां तीन से चार या अधिक उम्मीदवार अहम भूमिका निभा सकते हैं।
प्रदेश में दलबदल की रफ्तार ने भी चुनावी गणित को और जटिल बना दिया है। कई नेता अपने राजनीतिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए दल बदल रहे हैं, जिससे कई सीटों पर समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं। नए चेहरे, युवा उम्मीदवार और स्थानीय जनाधार वाले नेताओं को टिकट देने की कवायद भी जोर पकड़ चुकी है।
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कुल मिलाकर, यूपी की राजनीति इन दिनों नए गठबंधनों, बदलते पाले और तीखी रणनीतियों के कारण बेहद रोमांचक चरण में है। आगामी चुनाव में कौन सा मोर्चा मजबूत उभरकर सामने आएगा, यह देखना प्रदेश की जनता के लिए भी रुचिकर होने वाला है।
