मनोविज्ञान विभाग में बारहवां प्रोफेसर एल. बी. त्रिपाठी स्मृति व्याख्यान आयोजित
वर्तमान, अतीत और भविष्य को एक साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है ताकि बेहतर समाज , बेहतर व्यक्ति, बेहतर स्वास्थ्य एवं बेहतर व्यक्तित्व के निर्माण के परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट रूप से समझा जा सके: प्रो आनंद प्रकाश
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)।
दीन दयाल उपाध्याय, गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में बारहवें प्रोफेसर एलबी त्रिपाठी मेमोरियल लेक्चर का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रोफेसर आनंद प्रकाश, पूर्व विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग तथा डीन, इंटरनेशनल अफेयर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय, मुख्य वक्ता प्रोफेसर राकेश पाण्डेय, पूर्व विभागाध्यक्ष एवं सीनियर प्रोफेसर, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी रहे|
कार्यक्रम की शुरुआत प्रोफेसर एलबी त्रिपाठी के चित्र पर माल्यार्पण एवं श्रद्धा सुमन अर्पित कर किया गया। तत्पश्चात प्रोफेसर धनन्जय कुमार, विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग ने सभी अतिथियों का औपचारिक स्वागत किया। विभागाध्यक्ष ने विश्विद्यालय की कुलपति का आभार व्यक्त किया जिनके निर्देशन में कार्यक्रम को उचित रूपरेखा प्रदान की गयी।
कार्यक्रम में प्रोफेसर अनुभूति दुबे, अधिष्ठाता छात्र कल्याण, ने कार्यक्रम की थीम प्रस्तुत करते हुए पूर्व में हुए 11 स्मृति व्याख्यानों पर प्रकाश डाला |
इसी कार्यक्रम के दौरान “Human Behaviour in Sociocultural Context” नामक पुस्तक के दोनों संस्करण का विमोचन हुआ जिसकी सम्पादक प्रोफेसर सुषमा पाण्डेय, प्रोफेसर अनुभूति दुबे एवं प्रोफेसर धनञ्जय कुमार हैं|
पुस्तक विमोचन के पश्चात् प्रोफेसर सुषमा पाण्डेय ने प्रोफेसर एल. बी. त्रिपाठी के जीवन की उपलब्धियों एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र में किए गए योगदानों पर प्रकाश डाला तथा पुस्तक के मुख्य पक्षों का संक्षिप्त परिचय दिया |
कार्यक्रम में प्रोफेसर राजवंत राव, डीन, आर्ट्स फैकल्टी ने प्रोफेसर लाल बच्चन त्रिपाठी की अपनी स्मृतियों को साँझा करते हुए कार्यक्रम के आयोजन हेतु मनोविज्ञान विभाग की सराहना की।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर राकेश पाण्डेय ने “Integrating Isolated Psychological Mechanisms Underlying the Dispositional Mindfulness: Mental Health Relationship” (डिस्पोज़िशनल माइंडफुलनेस के अंतर्गत पृथक मनोवैज्ञानिक तंत्रों को एकीकृत करना- मानसिक स्वास्थ्य संबंध) शीर्षक पर अपना व्याख्यान दिया जिसमें उन्होंने बताया कि माईन्द्फुल्ल्नेस का स्वास्थय पर सकारात्मक प्रभाव होता है| साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया कि समाज में ऐसे व्यक्ति जो सचेत और भावनात्मक रूप से समायोजित होते है वे मानसिक रूप से अत्यधिक स्वस्थ्य होते हैं। वहीं ऐसे व्यक्ति सचेत नहीं होते एवं भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते हैं उन्हें मानसिक स्वस्थ्य से सम्बंधित समस्यायें सबसे अधिक होती हैं|
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रोफेसर आनंद प्रकाश ने कहा कि वर्तमान ही एकमात्र वास्तविकता है। वर्तमान वह है जहां अतीत विलीन हो जाता है और भविष्य विकसित होता है। वर्तमान, अतीत और भविष्य को एक साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है ताकि बेहतर समाज, बेहतर व्यक्ति, बेहतर स्वास्थ्य एवं बेहतर व्यक्तित्व के निर्माण के परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट रूप से समझा जा सके।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. गरिमा सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. गिरिजेश यादव, मनोविज्ञान विभाग, ने किया|
आयोजन की शोभा को बढ़ाते हुए मनोविज्ञान विभाग के विभिन्न वरिष्ठ आचार्य एवं विभिन्न महाविद्यालय के आचार्य उपस्थित रहे। प्रो सुधीर श्रीवास्तव, प्रो बेहरा, प्रो सुनीता मुर्मू, प्रो. अचल नंदिनी श्रीवास्तव, प्रो. अनुपम नाथ त्रिपाठी, प्रो. प्रेम सागर नाथ तिवारी, प्रो. श्रीनिवास शुक्ल, प्रो. आर. एन. त्रिपाठी, डॉ. प्रियंका गौतम, डॉ. राम कीर्ति सिंह, प्रो. मंजू मिश्र, प्रो. नाज़िश बानो, प्रो. राम भूषण , प्रो.अमृतांशु शुक्ल, प्रो. सीमा त्रिपाठी, डॉ. रीना मालवीय, डॉ सत्य प्रकाश के साथ विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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