
बलिया(राष्ट्र की परम्परा)। नवानगर ब्लॉक अंतर्गत अधिकांश गांवों में इन दिनों भीषण गर्मी के बीच पानी का संकट गहराता जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में लगाए गए इंडिया मार्क हैंडपंप या तो खराब पड़े हैं, गायब हैं या झाड़ियों में घिरे उपेक्षित पड़े हैं। स्थिति यह है कि जहां ग्रामीणों को पेयजल की सबसे अधिक आवश्यकता है, वहीं सरकारी हैंड पंप उनकी प्यास बुझाने में पूरी तरह विफल साबित हो रहे है। जलालीपुर गांव का एक हैंडपंप पूरी तरह से मिट्टी में दबा हुआ है। महीनों से बंद यह नल अब सिर्फ यादों में ही बाकी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसे दोबारा चालू करने की कोई कोशिश नहीं की गई। वहीं कांशीराम आवास, नवानगर के पीछे स्थित हैंडपंप की हालत और भी चौंकाने वाली है ,इसका ऊपरी हिस्सा ही गायब है। यह अब एक वीरान और बेकार संरचना बन चुका है, मानो कभी अस्तित्व ही न रहा हो। पुनईपार गांव में स्थित एक अन्य हैंडपंप चारों ओर झाड़ियों और सूखे पत्तों से घिरा हुआ है। वहां तक पहुंचने का रास्ता भी पूरी तरह बंद है। यह दर्शाता है कि वर्षों से इस नल की मरम्मत या सफाई की कोई सुध नहीं ली गई है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा अनुमोदित इंडिया मार्क-II और मार्क-III हैंडपंपों की स्थापना तथा रिबोर (दोबारा खुदाई पर लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
इंडिया मार्क-II हैंडपंप की औसत लागत 30,000 से 50,000 स्थापना सहित खर्च होता है।रिबोर की लागत 5,000 से 45,000 प्रति नल जल स्तर और मिट्टी की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इसके बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि पानी के लिए लोग तरस रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि कार्यों को केवल कागजों पर पूरा दिखाया जा रहा है। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि कई स्थानों पर हैंडपंपों का नामोनिशान तक नहीं है, जबकि भुगतान कर दिया गया है।
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने कई बार पंचायत सचिव, ब्लॉक कार्यालय और जनप्रतिनिधियों से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। एक बुजुर्ग ग्रामीण ने गुस्से में कहा,हमारे वोट से सरकारें बनती हैं, लेकिन हमें पानी तक नसीब नहीं। ये हैंडपंप हमारी प्यास नहीं बुझाते, बल्कि व्यवस्था की नाकामी की कहानी कहते हैं। स्थानीय लोगो का कहना है कि विभागीय अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का जाल फैल गया है। जहां-जहां रिबोर और मरम्मत का काम दिखाया गया है, वहां हकीकत कुछ और ही है कहीं नल गायब है, कहीं बंद पड़ा है और कहीं पहुंचने लायक रास्ता भी नहीं छोड़ा गया।
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