जिस सन्तान को पाल पोसकर बड़ा
किया वही उन्हें डांटकर चुप करवाए,
स्वाभाविक है उनके मन में भी तब
ताड़ना, प्रताड़ना के कुभाव आयें।
वृद्धजनों को भावनात्मक रूप से
संतानों द्वारा धमकाना समाज में,
आज एक अति विषम समस्या है,
वृद्धाश्रम इस समस्या का विकल्प है।
इस लिहाज से रिश्तों के इस संकट
का समाधान वृद्धाश्रम हो सकता हो,
भले ही यह हमारी संस्कृति में न हो,
घुट घुटकर जीने से अच्छा वृद्धाश्रम हो।
यदि वृद्धाश्रम पद्धति अपनाने की
भारत में भी ज़रूरत हो तो यह कार्य
सरकार अपने हाथ में ले व अच्छी
सुविधा व्यवस्था के साथ चलाये।
बुजुर्ग लोग संग मिलकर जीवन के
अंतिम पड़ाव को चैन से काट सकें,
मात पिता, दादा दादी, नाना नानी
सबको पूरा मान सम्मान मिल सके।
हमारा कर्तव्य है उम्र के इस पड़ाव में
उनकी सुख शान्ति का ख्याल रखें,
वृद्धाश्रम के अनजान एकाकी जीवन
से अपने वृद्ध माता पिता को दूर रखें।
श्रवण कुमार बन कर अंधे मात पिता
को काँवर में बिठाल तीर्थ कराना है,
श्रीराम जैसा पुत्र बन पिता वचन हेतु
सिंहासन त्याग वनवास चले जाना है।
माता पिता देव हैं वे ही सारी दुनिया हैं,
श्रीगणेश जी उनकी ही परिक्रमा कर
देवताओं में प्रथम पूज्य कहलाए हैं,
आदित्य श्रेष्ठ जग में तभी कहलाये हैं।
इनके आशीर्वाद से ही जीवन जीने
का आइये आज फिर संकल्प करें,
आदित्य आगे बढ़ कर उनके व अपने
हर सपने को शाश्वत साकार करें।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
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