Tuesday, October 14, 2025
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अहिंसा परमोधर्म: कृषि की देन: प्रो.विपुला दुबे

प्रो. विपुला दुबे ने धर्मों के परिवर्तित स्वरूप एवं उसके भौतिक आधारों किया का विषद विश्लेषण

हर धर्म का एक भौतिक आधार: प्रो.विपुला दुबे

धर्म, अर्थव्यवस्था से प्रभावित तो राजनीति, धर्म से प्रभावित: प्रो. राजवंत राव

धर्म और कला अन्योन्याश्रित: प्रो. प्रज्ञा चतुर्वेदी

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)l दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के 43वें दीक्षान्त सप्ताह के अंतर्गत प्राचीन इतिहास विभाग में आयोजित एक कार्यक्रम की मुख्य वक्ता एवं पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विपुला दुबे ने धर्मों के परिवर्तित स्वरूप एवं उसके भौतिक आधारों का विषद विश्लेषण किया। उन्होंने बताया कि कृषि के उन्मेष के साथ ही भूमि को अन्य देव श्रेणियों में समाहित करते हुए इनका पूजन प्रारम्भ हुआ। उन्होंने धर्म का पर्याय प्राक्वैदिक काल में ऋत और सत् को बताया। धर्म मनुष्य की पहचान से लेकर उसकी मनःस्थिति से सम्बन्धित है। ऋग्वैदिक धर्म यज्ञ प्रधान था। मानव जीवन का बहुत बड़ा परिवर्तन विन्दु कृषि क्रान्ति था। अथर्ववेद में अन्न एवं ओदन को ही धर्म कह दिया गया। कृषि के विकास के साथ अब आस्था का केन्द्र अन्न हो गया। अहिंसा परमोधर्मः केवल श्रमण परम्परा की देन नहीं है अपितु कृषि की देन थी। निवर्तक धर्म (कूप बनवाना, तालाब खुदवाना, बगीचा लगवाना) की व्याख्या करते हुये बताया कि यह भुक्ति और मुक्ति दोनो को प्रदान करता है।
विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. राजवन्त राव ने बताया कि कुछ दशकों से इतिहास के अध्ययन में यथातथ्य अतीत का विश्लेषण न होकर इतिहास के विभिन्न घटकों- धर्म, अर्थ, कला, राजनीति का विश्लेषण हो गया है। इतिहास के ये घटक तत्व सावयवी हैं एवं परस्पर अन्तारावलम्बी भी। इनमें धर्म सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक है। उन्होंने बताया कि संज्ञानात्मक क्रान्ति के पश्चात् ही धार्मिक चेतना एवं आस्था का विकास हुआ और किंवदन्तियों, मिथक, देवता एवं आस्था प्रतीकों की निर्मिति हुई। स्पेन के आल्तमीरा की गुफाओं की छतों पर चित्र बनाना उसकी आस्था पर ही आधारित था। कृषि क्रान्ति ने अर्थव्यवस्था को नया रूप दिया। अर्थव्यवस्था परिवर्तन धार्मिक चेतना को भी प्रभावित करता है। अर्थव्यवस्था, धर्म को और धर्म, राजनीति को प्रभावित करता है. धर्म भी अर्थव्यवस्था एवं राजनीति को अपने अनुसार परिवर्तित करता रहा है।
इसके पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. प्रज्ञा चतुर्वेदी ने प्रो. विपुला दुबे का स्वागत करते हुए धर्म एवं कला के अन्तरावलम्बन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सभ्यता के प्रारम्भिक काल में धर्म कला-प्रतीकों में अभिव्यक्त हुई थी।
इस अवसर पर प्रो. रामप्यारे मिश्र, प्रो. शीतला प्रसाद सिंह, प्रो. दिग्विजय नाथ, प्रो. ध्यानेन्द्र नारायण दूबे, डॉ. विनोद कुमार और शोधार्थी एवं विभाग के विद्यार्थी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. पद्मजा सिंह तथा आभार ज्ञापन डॉ. मणिन्द्र यादव ने किया।

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