February 5, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

मित्र तुम मुझसे कितना भी दूर रहो

मित्र तुम मुझसे कितना भी दूर हो
फिर भी हर पल दिल के पास हो,
तुम्हारा चेहरा नहीं देख सकता पर
महसूस करता हूँ, आस-पास हो ।

तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकता पर गले
मिलने का एहसास कर सकता हूँ,
क्या फ़र्क़ पड़ता है कि तुम कहाँ हो,
बस तुम्हें अपने दिल में रखता हूँ ।

मैं कहीं भी रहूँ, उम्मीद है कि हम
दोनो के बीच मीलों की जो दूरी है,
कदाचित बहुत जल्दी वह दूरी भी
हमारे बीच से समाप्त हो जाएगी।

क्योंकि हम चाहते हैं कि हम तुम
दोनो सच्चे दिल से साथ साथ हों,
मित्र तुम मुझसे कितना भी दूर हो
फिर भी सच्चे दिल से मेरे पास हो।

परस्पर परवाह करना वह उपहार है,
जो कभी ख़रीदा नहीं जा सकता है,
जो प्रेम और प्यार से ही हो पाता है,
दिल की धड़कनों से सींचा जाता है।

यादें पनपती दो पल के लिए ही नहीं
ये आजीवन की बन जाती यादगार हैं,
आदित्य मित्र की मित्रता की मिशाल
सारे ज़माने की बन जाती मिशाल है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’