Wednesday, December 3, 2025
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उन्नीस की उम्र, अनंत का बलिदान: अमर शहीद खुदीराम बोस

असि. प्रो. जितेन्द्र कुमार पाण्डेय

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हर अध्याय अदम्य साहस, त्याग और राष्ट्रभक्ति की गाथाओं से भरा हुआ है। इन अमर गाथाओं के शिखर पर जिस नाम की चमक आज भी वैसी ही उज्ज्वल है, वह है, शहीद खुदीराम बोस। मात्र 19 वर्ष की आयु में हँसते-हँसते फाँसी पर झूल जाने वाला यह युवा क्रांतिकारी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि उस दौर के भारतीय युवाओं की चेतना, साहस और संकल्प का जीवंत प्रतीक था। उनकी जयंती पर उनका स्मरण करना स्वतंत्रता के मूल्य को समझने का प्रयास भी है और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को नए सिरे से जानने का अवसर भी। खुदीराम बोस ने बचपन से ही अन्याय और दमन के विरुद्ध खड़े होने का अद्भुत साहस दिखाया। उस समय भारत ब्रिटिश शासन की कठोर नीतियों और क्रूर दमन का सामना कर रहा था। युवाओं में स्वदेशी आंदोलन की लहर उठ रही थी और इसी वातावरण में खुदीराम बोस जैसे वीरों ने क्रांतिकारी मार्ग को अपनाया। वे जानते थे कि यह राह सरल नहीं, लेकिन उनके भीतर स्वतंत्रता का जो ज्योतिर्पुंज जल रहा था, वह हर कठिनाई से बड़ा था। 1908 में अंग्रेज अधिकारियों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के विरोध में उन्होंने जिस निर्भीक कार्रवाई को अंजाम दिया, उसने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया। गिरफ्तारी के बाद भी उनका चेहरा मुस्कुराता रहा, और अदालत में उनका अडिग मनोबल यह संदेश देता रहा कि स्वतंत्रता की लड़ाई केवल हथियारों से नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास और अटल साहस से जीती जाती है। फाँसी की सज़ा सुनाए जाने पर उनकी आँखों में भय नहीं, बल्कि गर्व और संतोष दिखा, ऐसा संतोष, जो केवल देश के लिए जीवन न्योछावर करने वालों की आँखों में चमकता है। खुदीराम बोस की शहादत केवल एक घटना नहीं थी; वह एक चिंगारी थी, जिसने हजारों युवाओं के हृदय में क्रांतिकारी चेतना की ज्वाला प्रज्वलित की। यह ज्वाला बंगाल से निकलकर पूरे देश में फैल गई और स्वतंत्रता संग्राम की गति को नई दिशा मिल गई। आज भी उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए उम्र नहीं, बल्कि संकल्प की मजबूती मायने रखती है। वर्तमान समय में जब चुनौतियाँ बदल गई हैं, लेकिन राष्ट्र को सशक्त बनाने की जिम्मेदारी अब भी हम सब पर है, ऐसे में खुदीराम बोस का जीवन हमें प्रेरित करता है कि कर्तव्य का मार्ग कठिन हो सकता है, पर उससे विमुख होना भारतीयता के भाव के विरुद्ध है। देशभक्ति आज केवल तलवार उठाने का नाम नहीं, बल्कि समाज को बेहतर बनाने, सत्य और न्याय के पक्ष में खड़े होने, और राष्ट्रहित के लिए समर्पित रहने का संकल्प है। खुदीराम बोस का बलिदान अनंत हैl समय की सीमाओं से परे, पीढ़ियों को प्रेरित करता हुआ। उनकी जयंती पर हम न केवल उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, बल्कि यह भी संकल्प लेते हैं कि स्वतंत्रता के इस उपहार का सम्मान करते हुए देश के विकास, एकता और प्रगति के लिए निरंतर योगदान देंगे। शहीद खुदीराम बोस अमर रहें। उनका साहस, उनका बलिदान और उनका उज्ज्वल आदर्श सदैव हमारा पथ प्रदर्शक बना रहे।

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