November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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आधुनिक भारत के शिल्पी ‘‘भारत रत्न” लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल

31 अक्तूबर जयंती पर विशेष

संत कबीर नगर (राष्ट्र की परम्परा)। माँ भारती ने समय-समय पर अनेक महापुरुषों को जन्म दिया है। आधुनिक भारत के शिल्पी ‘‘भारत रत्न‘‘ लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल भी उनमें से एक हैं।
दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर सन् 1875 ई0 में हुआ था। इनके पिता का नाम झेबर भाई पटेल तथा माता का नाम लाड बाई था। इनके पिता एक साहसी व्यक्ति थे। उन्होंने सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में रानीलक्ष्मी बाई के सैनिक के रुप में भाग लिए थें। सरदार पटेल के शरीर में भी अपने बहादुर पिता का ही रक्त संचारित था। वे बाल्यकाल से ही अत्यन्त साहसी एवं निडर थे। कहा जाता है कि जब वे नौ साल के थे तो  उनकी आँख पर फोड़ा निकल आया। किसी व्यक्ति ने उनसे बताया कि यदि लोहे की सलाख गर्म करके फोड़े में चुभो दिया जाय तो वह ठीक हो सकता है। फिर क्या था उन्होंने तुरन्त सलाख गर्म करके, अपने परिजनों से सलाख को फोड़े में चुभाने को कहा किन्तु किसी का भी साहस नहीं हुआ कि सलाख को फोड़े मेें चुभा दे। फिर उन्होेने स्वयं सलाख फोड़े में चुभा दी। यह देख कर सभी हतप्रभ रह गये।
महात्मा गांधी जी द्वारा चलाये जा रहे असहयोग आन्दोलन का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे उसमें सक्रिय रुप से भाग लिए और गांधी जी का पूरा साथ दिया। इसी बीच सन्  1927 में गुजरात में भयानक बाढ़ आ गयी। पटेल जी ने जनता की असीम सेवा की। सारे देश से चन्दा माँग-माँग कर उन्होंने जनता के लिए भोजन तथा वस्त्र का  प्रबन्ध किया था। अक्टूबर,1928 मेें ‘कर मत दो’ के उद्घोश के साथ लगान-वृद्धि के विरोध में बारदोली (गुजरात) में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। बारदोली तालुका की महिलाओं ने ही सर्वप्रथम ‘‘सरदार” कह कर पुकारा था। ‘‘सत्याग्रह पत्रिका” के संस्थापक सरदार पटेल गाँधी जी के साथ अनेक यातनाएं सही, अनेक बार जेल जाना पड़ा किन्तु भारत माँ के अमर सपूत ने विदेशी सरकार के सामने कभी भी सर को नहीं झुकाया और अन्त में ब्रिटिश हुकूमत को 15 अगस्त सन् 1947 को भारत छोड़ कर भागना पड़ा।
आजादी के तुरन्त राष्ट्र अनेक राजे-रजवाड़े में बंट गया। किन्तु राष्ट्रभक्त पटेल जी ने अपने सूझ बूझ  व पराक्रम से सभी देशी रियासतों को पुनः एकत्रित किया। ‘‘भारत के विस्मार्क” के नाम से विख्यात पटेल जी के समक्ष जब यह प्रश्न उठा कि प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए, तो उन्होने ही कहा था कि पं नेहरु को, क्योंकि मैं तो साल दो साल का मेहमान हूँ। पं नेहरु के प्रधानमंत्री बनने के बाद वे भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री बने और जनता की अटूट सेवा करते रहे।
अन्त में वह दिन भी आया जब वे सारे भारतवासियों को 15 दिसम्बर 1950 को रोता बिलखता छोड़ गये। आज वे हमरे बीच नहीं हैं, किन्तु राष्ट्र उनका सदैव ऋणी रहेेेगा।

देश उनका हमेश, कर्जदार है, जिसने सर दे, दिया है वतन के लिए।
राष्ट्र भक्त ऐसे, महामानवों के लिए,शीश झुकता है हमारा नमन के लिए।।