दर्पण नहीं मुखौटे बदलते रहते हैं,
लोकतंत्र में संविधान नहीं साँसद,
विधायक व मंत्री बदलते रहते हैं,
संत्री से लेकर सचिव वही रहते हैं।
दर्पण टूटकर कई टुकड़े हो जाते हैं,
जितने टुकड़े उतने मुखड़े दिखाते हैं,
पर दर्पण का काम तो वही रहता है
मुखड़े अलग अलग रूप दिखाते हैं।
भारतीय राजनीति में नेता बदलते हैं,
पर कुर्सी और पदनाम वही रहता है,
काम और कारनामे बदल जाते हैं,
परंतु जनता का हाल वही रहता है।
यहाँ ग़रीब और ग़रीब हो जाता है,
अमीर का धन वैभव बढ़ जाता है,
जो सेवक बनकर वोट माँगता है,
चुनाव जीत माननीय हो जाता है।
दल कोई भी हो दल बदल करता है,
दल बदल कर दल दल बढ़ाता है,
आदित्य लोकतंत्र और संविधान,
दोनों का दर्पण रूप दिख जाता है।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
मेरठ (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)उत्तर प्रदेश के मेरठ में पुलिस ने गढ़ रोड स्थित सम्राट…
प्रतीकात्मक पौड़ी (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)उत्तराखंड के पौड़ी जिले के चौबट्टाखाल क्षेत्र में एक दिल…
देवरिया, (राष्ट्र की परम्परा)पुलिस अधीक्षक देवरिया विक्रान्त वीर के निर्देशन में रविवार की सुबह 5…
हरदोई (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। पुलिस ने एक सनसनीखेज मामले का खुलासा करते हुए बताया…
देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)। पुलिस अधीक्षक देवरिया विक्रान्त वीर के निर्देशन में रविवार की सुबह…
आरा (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। बिहार पुलिस ने शनिवार को भोजपुर जिले के शाहपुर इलाके…