March 15, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

प्रेम ही ईश्वर, ईश्वर ही प्रेम

प्रेम ही ईश्वर है प्रेम परमात्मा है,
प्रेम के सिवाय कुछ भी नहीं है,
प्रेममय हर जीव, जीव जीवन है,
चराचर के प्रेम में परम ईश्वर है।

निर्जीव भी जड़ है फिर चाहे
वो किसी भी रूप में भी हो,
पेड़ पौधे पशु पक्षी मनुष्य,
ईश्वर स्वरुप, परमात्मा है।

जो निराकार है, साकार है,
मनुष्य का जीवन साधना है,
चार आश्रम, चार पुरुषार्थ में,
चार वेद में और चार वर्ण में।

मेरा तो ऐसा मानना है कि गृहस्थ
आश्रम से बड़ा कोई आश्रम नहीं है,
जिसमें प्रेम, सेवाभाव, दानशीलता,
सहिष्णुता, मृदुभाव स्वार्थहीनता है।

प्रेम आसक्ति है प्रेम में शक्ति है,
प्रेम ही पूजा है, प्रेम ही भक्ति है,
प्रेम में पवित्रता है, प्रेम अनुरक्ति है,
प्रेम के बिना यह जीवन अधूरा है।

आदित्य प्रेम बिना जीवन व्यर्थ है,
प्रेम के बिना जीवन में नीरसता है,
प्रेम ही ईश्वर है, ईश्वर ही प्रेम है,
प्रेम में सच्चाई, प्रेम में विश्वास है।

  • डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र
    ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’