सूर्य उपासना और मातृ श्रद्धा का अनुपम पर्व जो जीवन में प्रकाश भरता हैl
भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में कुछ पर्व ऐसे हैं जो केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि मानव जीवन के दर्शन और प्रकृति के सम्मान का प्रतीक हैं। उन्हीं में से एक है — छठ पूजा, जो सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित सबसे पवित्र और अनुशासित पर्वों में से एक है।
यह पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में असाधारण भक्ति और अनुशासन के साथ मनाया जाता है। छठ पर्व का मुख्य उद्देश्य है — सूर्य देव की आराधना कर स्वास्थ्य, समृद्धि, संतान-सुख और पारिवारिक कल्याण का आशीर्वाद प्राप्त करना।
चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व शुद्धता, संयम और आत्मबल का अद्भुत संगम है, जिसमें भक्त अपने तन, मन और आत्मा को पवित्र करने के लिए कठोर नियमों का पालन करते हैं।
🕉️ छठ पूजा 2025 की तिथियाँ और पूजा क्रम
वर्ष 2025 में छठ पर्व अक्टूबर महीने में मनाया जाएगा।
यह पर्व नहाय-खाय से आरंभ होकर उषा अर्घ्य के साथ संपन्न होगा। आइए जानते हैं — चारों दिनों की पूजा विधि और धार्मिक महत्व।
🌿 पहला दिन — नहाय-खाय
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो इस पर्व का पहला और अत्यंत पवित्र दिन है। इस दिन व्रती (मुख्य उपासक), विशेष रूप से महिलाएं, प्रातःकाल गंगा, सरयू या नजदीकी नदी में स्नान करती हैं।
यह स्नान शरीर और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक होता है। स्नान के बाद वे घर आकर पूरे घर की सफाई करती हैं ताकि वातावरण पूर्णतः पवित्र हो सके।
इस दिन केवल एक बार भोजन किया जाता है — जिसे “नहाय-खाय प्रसाद” कहा जाता है। इसमें कद्दू की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल बनाया जाता है। यह सात्विक भोजन बिना लहसुन-प्याज के तैयार किया जाता है।
इस दिन का उद्देश्य है — शरीर को शुद्ध करना और आने वाले कठोर व्रत के लिए मन को तैयार करना।
🌾 दूसरा दिन — खरना
दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती निर्जला उपवास रखते हैं — सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक वे न जल पीते हैं, न अन्न ग्रहण करते हैं।
सूर्यास्त के समय व्रती स्नान कर पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं और विशेष प्रसाद बनाते हैं।
इस प्रसाद में होती है — गुड़ की खीर (चावल, दूध और गुड़ से बनी), घी लगी रोटी, केला और अन्य फल
सबसे पहले यह प्रसाद सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, फिर परिवार और पड़ोस के लोगों को बांटा जाता है।
इसी के बाद व्रती अपना व्रत खोलते हैं और अगले दिन के निर्जला उपवास के लिए तैयार होते हैं।
खरना की संध्या बेला अत्यंत पवित्र होती है — जब हर घर से “छठ मइया” के गीत गूंजते हैं और वातावरण में भक्ति का अद्भुत संचार होता है।
🌇 तीसरा दिन — संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन का नाम ही छठ पूजा का मूल है — यह वह क्षण होता है जब डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
यह दिन व्रत का सबसे कठोर दिन माना जाता है। व्रती सूर्योदय से अगले दिन के सूर्योदय तक निर्जला व्रत रखते हैं।
शाम को सूर्यास्त के समय व्रती परिवार सहित नदी, तालाब या घाट पर पहुंचते हैं।
वहाँ वे “डालियाँ” सजाते हैं — जिसमें ठेकुआ, चावल, गन्ना, नींबू, नारियल, मौसमी फल और दीपक रखे जाते हैं।
सूर्य देव के अस्त होते समय व्रती घाट पर खड़े होकर जल अर्पित करते हैं और छठी मइया से परिवार की समृद्धि, संतान-सुख और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
घाटों पर हजारों दीपों की रोशनी और लोकगीतों की गूंज से वातावरण अलौकिक हो उठता है।
यह अनुष्ठान मानव जीवन के उस दर्शन को व्यक्त करता है जिसमें डूबते सूर्य का भी सम्मान किया जाता है — यह सिखाता है कि हर अंत में भी नई शुरुआत छिपी होती है।
🌅 चौथा दिन — उषा अर्घ्य
छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन “उषा अर्घ्य” कहलाता है। यह वह पवित्र क्षण होता है जब भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
यह पूजा सुबह ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है। व्रती घाट पर जाकर सूर्य देव के उगने की प्रतीक्षा करते हैं और जैसे ही पहली किरण आकाश में फैलती है, जल से अर्घ्य अर्पित करते हैं।
इसके बाद व्रती ‘पारण’ करते हैं — अर्थात फल या गुड़ खाकर उपवास तोड़ते हैं।
इस दिन के साथ चार दिनों का यह तप, संयम और श्रद्धा का पर्व पूर्ण हो जाता है।
☀️ छठ पूजा का महत्व और दर्शन
छठ पूजा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, पर्यावरण और जीवन के संतुलन का प्रतीक है।
सूर्य देव की उपासना इसलिए की जाती है क्योंकि वे ऊर्जा, प्रकाश और जीवन के मूल स्रोत हैं।
इस पर्व में कृत्रिम चीजों का प्रयोग वर्जित है — मिट्टी, बाँस, पत्तों और प्राकृतिक वस्तुओं से पूजा सामग्री तैयार की जाती है। यह हमें पर्यावरण संरक्षण का व्यावहारिक संदेश देता है।
छठ पूजा परिवार और समाज के एकता का उत्सव भी है।
पूरे परिवार मिलकर ठेकुआ, खीर, मालपुआ और मौसमी फल तैयार करते हैं। महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाती हैं —
“केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव, हे छठी मइया…”
इन गीतों में केवल भक्ति नहीं, बल्कि मातृत्व, प्रेम और त्याग की गहराई झलकती है।
🌻 वैज्ञानिक दृष्टि से छठ पूजा
छठ पूजा में सूर्य की किरणों के सीधे संपर्क में आना विटामिन D के अवशोषण को बढ़ाता है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सुदृढ़ करता है।
नदी के स्वच्छ जल में स्नान और उपवास शरीर को डिटॉक्स करने की प्रक्रिया है, जिससे मन और शरीर दोनों निर्मल होते हैं।
इस प्रकार छठ पूजा आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है।
🌼 सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा समाज में समानता, सामूहिकता और सहयोग की भावना को बल देती है।
इस अवसर पर गरीब और अमीर, जाति या वर्ग का भेद मिट जाता है। सभी एक ही घाट पर, एक ही सूर्य के समक्ष श्रद्धा से सिर झुकाते हैं।
यह त्योहार भारतीय संस्कृति की वह झलक है जो बताती है कि आस्था केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि दिलों में बसती है।
🙏 छठ पूजा का संदेश: आस्था में निहित संतुलन
छठ पूजा हमें सिखाती है कि भक्ति में दिखावा नहीं, बल्कि संयम और निष्ठा जरूरी है।
जब घाटों पर हजारों दीप जलते हैं और आकाश में उगता सूर्य छठ मइया के गीतों के बीच मुस्कुराता है, तब लगता है कि सच में —
“जहाँ आस्था है, वहीं सृष्टि में प्रकाश है।”
छठ पर्व इस बात का प्रमाण है कि भक्ति केवल पूजा नहीं, बल्कि प्रकृति, परिवार और समाज के प्रति कृतज्ञता का भाव है।
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