आध्यात्मिकता में माता-पिता का सर्वश्रेष्ठ स्थान, बड़े बुजुर्ग वृद्धजन ईश्वर अल्लाह का रूप
पिता की धोती फ़टी है तो हमारी ब्रांडेड चीजों का कोई फायदा नहीं – मां से ऊंची आवाज़ में बात कर रहे हैं तो मंदिर जाकर देवी मां को पूजने का मतलब नहीं – एडवोकेट किशन भावनानी
गोंदिया Rkpnews – वैश्विक स्तरपर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता में आस्था जग प्रसिद्ध है।अपने माता पिता और बड़े बुजुर्गों का जितना सम्मान भारतीय संस्कृति में सदियों से प्रवाहित हो रहा है, शायद दुनिया में कहीं नहीं देखने को मिलेगा।परंतु दुर्भाग्य से कहना पड़ रहा है कि माता-पिता बड़े बुजुर्गों के सम्मान की इतनी धारदार कट्टरता अभी कुछ वर्षों से तीव्रता से कम होती जा रही है।याने पाश्चात्य संस्कृति की छाया भारतीय समाज में तीव्रता से बढ़ती जा रही है।आजमाता-पिता अपने बच्चों को अपना पेट काटकर ऊंचे से ऊंची शिक्षा दिलाकर डॉक्टर इंजीनियर सीए सहित अनेक प्रोफेशनल डिग्रियां दिलाकर उच्च मुकाम पर पहुंचा रहे हैं। परंतु कुछ अपवादों को छोड़कर इन्हें नवयुवकों द्वारा अपने भविष्य, अपनी जिंदगी अपनी लाइफ स्टाइल के नाम पर बड़े शहरों, विदेशों में जॉबके नाम पर जाकर वही सेट हो जाते हैं। अनेक युवा वही शादी कर लेते हैं तो कुछ अपने नाटिव स्थान पर शादी करके फैमिली सहित वापस बड़े शहर या विदेश में चले जाते हैं और बेचारे मां-बाप वही अपनी तंगी हालत में जीते हैं। ऐसे अनेक हकीकत किस्से हर शहर, गांव में आम होते जा रहे हैं हमारी कॉलोनी में भी कई किस्से मेरी नजरों के सामने हैं जो बेचारे फटी पेंट या धोती पहन कर गुजारा कर रहे हैं और उनके बच्चे ब्रांडेड चीजों को वापरकर अपनी पाश्चात्य लाइफ स्टाइल जी रहे हैं जिसका कोई फायदा नहीं है। मेरा मानना है कि ऐसे युवक इस नाइंसाफी का बीज बो रहे हैं जो आगे चलकर अपने बच्चों से वटवृक्ष के रूप में परेशानियों से भरा पाएंगे। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे आओ अपने माता-पिता बड़े बुजुर्गों वृद्धजनों का सम्मान और उनकी देखभाल करें।
साथियों बात अगर हम आध्यात्मिक आस्था की करें तो, हम लोग पूजा-पाठ बहुत करते हैं, लेकिन हमें सकारात्मक फल नहीं मिल पाते हैं। मेरा मानना है कि सिर्फ पूजा से जीवन में सुख शांति नहीं मिल सकती है। अपना आचरण भी अच्छा बनाए रखना जरूरी है। हम लोग माता-पिता का सम्मान नहीं करते हैं और सिर्फ पूजा-पाठ करते हैं, तो हमें सुख शांति नहीं मिल पाती है। देवी-देवता भी उन्हीं लोग पर कृपा करते हैं जो अपने माता-पिता का पूरा सम्मान करते हैं और उनके सुख-दुख का ध्यान रखते हैं।
साथियों बात अगर हम हमारे शास्त्रों में बुजुर्गों के सम्मान की करें तो, यजुर्वेद का उल्लेख, हमारे शास्त्रों में भी बुजुर्गों का सम्मान करने की राह दिखलायी गई है। यजुर्वेद का निम्न मंत्र संतान को अपने माता-पिता की सेवा और उनका सम्मान करने की शिक्षा देता है-
यदापि पोष मातरं पुत्र: प्रभुदितो धयान्।
इतदगे अनृणो भवाम्यहतौ पितरौ ममां॥
अर्थात् जिन माता-पिता ने अपने अथक प्रयत्नों से पाल पोसकर मुझे बड़ा किया है, अब मेरे बड़े होने पर जब वे अशक्त हो गये हैं तो वे ‘जनक-जननी’ किसी प्रकार से भी पीड़ित न हों, इस हेतु मैं उसी की सेवा सत्कार से उन्हें संतुष्ट कर अपा आनृश्य (ऋण के भार से मुक्ति) कर रहा हूँ।
साथियों आज अंतरराष्ट्रीय स्तरपर हम मनीषियों को को यह समझने की जरूरत है कि वरिष्ठ नागरिक, वृद्धजन, बड़े बुजुर्ग हमारे समाज की अनमोल विरासत होते हैं, उन्होंने अपने समाज और देश को बहुत कुछ दिया है। वह हमारी धरोहर हैं, अनुभवों का एक खजाना है जो किसी भी देश की उन्नति के लिए मूल्यवान मंत्र है जिसका सही दिशा में उपयोग किया जाए तो उस देश को सामाजिक-आर्थिक नैतिक संपन्नता से नवाज़ने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि उनके अनुभवों के साथ उनका आशीर्वाद भी काम करता है जिसमें स्वयं ईश्वर अल्लाह भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते इतनी ताकत होती है आशीर्वाद या दुआ में!! इसलिए हमें चाहिए कि बड़े बुजुर्गों के अनुभवों और सीख़ से हम जीवन में आई विपत्तियों से पार पाने में सक्षम हों।आओ वृद्धावस्था को सुखी बनाएं-उनका आशीर्वाद लें।
साथियों बात अगर हम माता पिता बड़े बुजुर्ग वृद्धजनों के सम्मान की करें तो, बचपन से ही हमें घर में शिक्षा दी जाती है कि हमें अपने से बड़ो का सम्मान करना चाहिए। वरिष्ठजन हमारे घर की नींव होते हैं। बुजुर्गों का आशीर्वाद बहुत भाग्य वालों को मिलता है इसलिए सभी को अपने से बड़ों और वरिष्ठजनों का सम्मान करना चाहिए। लेकिन आज के समय में ये कहना अनुचित नहीं होगाकि अबये मात्र औपचारिकता रह गई है। लेकिन हर व्यक्ति को वरिष्ठजनों के प्रति सम्मान और आदर की भावना रखनी चाहिए। हमारे देश में बड़े लोगों को ईश्वर अल्लाह के तुल्य और उनके आशीर्वाद को किसी भी काम में सबसे बड़ा सहायक माना जाता है, इसलिए हमारे देश में सभी अपने से बड़ों का सम्मान और आदर करते हैं। फिलहाल अब हालात काफी बदल गए हैं। कई मामलों में वृद्धजनों को अपनी संतानों द्वारा मुश्किलें और दिक्कतें झेलते देखा गया है
साथियों बात अगर हम माता पिता वृद्धजनों की अवहेलना की करें तो, एक पेड़ जितना ज्यादा बड़ा होता है, वह उतना ही अधिक झुका हुआ होता है, यानें वह उतना ही विनम्र और दूसरों को फल देने वाला होता है। यही बात समाज के उस वर्ग के साथ भी लागू होती है,जिसे आज कीतथाकथित युवा तथा उच्च शिक्षा प्राप्त पीढ़ी बूढ़ा कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ देती है। वह लोग भूल जाते हैं कि अनुभव का कोई दूसरा विकल्प दुनिया में है ही नहीं। अनुभव के सहारे ही दुनिया भर में बुजुर्ग लोगों ने अपनी अलग दुनिया बना रखी है। जिस घर को बनाने में एक इंसान अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है, वृद्ध होने के बाद उसे उसी घर में एक तुच्छ वस्तु समझ लिया जाता है। बड़े बूढ़ों के साथ यह व्यवहार देखकर लगता है जैसे हमारे संस्कार ही मर गए हैं। बुजुर्गों के साथ होने वाले अन्याय के पीछे एक मुख्य वजह सामाजिक प्रतिष्ठा मानी जाती है। सब जानते हैं कि आज हर इंसान समाज में खुद को बड़ा दिखाना चाहता है और दिखावे की आड़ में बुजुर्ग लोग उसे अपनी सुंदरता पर एक काला दाग़ दिखते हैं। बड़े घरों और अमीर लोगों की पार्टी में हाथ में छड़ी लिए और किसी के सहारे चलने वाले बुढ़ों को अधिक नहीं देखा जाता, क्योंकि वह इन बूढ़े लोगों को अपनी आलीशान पार्टी में शामिल करना तथाकथित शान के ख़िलाफ़ समझते हैं। यही रुढ़िवादी सोच उच्च वर्ग से मध्यम वर्ग की तरफ चली आती है। आज के समाज में मध्यम वर्ग में भी वृद्धों के प्रति स्नेह की भावना कम हो गई है।
साथियों बात अगर हम माता पिता के बुजुर्ग अवस्था के पड़ाव की करें तो,बबुजुर्गावस्था हर इंसान के जीवन का एक पड़ाव है। इस समय में व्यक्ति को प्यार सम्मान और अपनेपन की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। जिन लोगों पर बुजुर्गों का साया होता है वे लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं। बुजुर्ग ही हमें जीवन जीने का सही मार्ग सिखाते हैं। उनके अनुभव और सीख से जीवन में हम किसी भी कठिनाई को पार करने में सक्षम होते हैं। इसलिए हमें कभी भी उनके प्रति उपेक्षा का भाव नहीं रखना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस को पूरी तरह से बुजुर्गों के लिए समर्पित किया जाता है। इस दिन उनके सम्मान में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों का खुशी का ध्यान रखते हुए कई तरह के आयोजन किए जाते हैं। इस दिन बुजुर्गोंको होने वाली समस्याओं और उनकी सेहत के विषय में गंभीरता पूर्वक विचार किया जाता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ अपने माता पिता बड़े बुजुर्गों का सम्मान करें। आध्यात्मिकता में माता-पिता का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। बड़े बुजुर्ग वृद्धजन ईश्वर अल्लाह का रूप है। पिता की धोती फटी है तो हमारी ब्रांडेड चीजों का कोई फायदा नहीं है। मां से ऊंची आवाज में बात कर रहे हैं तो रोज मंदिर जाकर देवी मां का पूजन करने का मतलब नहीं।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ, स्तंभकार, एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र
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