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भोपाल गैस त्रासदी के सबक सीख: प्रदूषण नियंत्रण का सामूहिक संकल्प

✍️ पुनीत मिश्र

2- 3 दिसंबर 1984, भारतीय इतिहास का वह दर्दनाक अध्याय है, जहाँ विकास की तेज़ रफ़्तार ने मानव जीवन की सुरक्षा को पीछे छोड़ दिया। भोपाल गैस त्रासदी केवल एक औद्योगिक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि यह चेतावनी थी कि लापरवाही, कमजोर सुरक्षा व्यवस्थाएँ और गैर-जिम्मेदार औद्योगिक संस्कृति किस तरह एक पूरे शहर की सांसें छीन सकती हैं। आज भी यह घटना हजारों परिवारों की स्मृतियों में टीस की तरह मौजूद है। हम आहत परिवारों के प्रति आत्मीय संवेदनाएं व्यक्त करते हुए दिवंगत आत्माओं को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस इसी त्रासदी की याद दिलाता है कि प्रदूषण केवल पर्यावरण का विषय नहीं, बल्कि जीवन और भविष्य का प्रश्न है।
आज प्रदूषण अपनी सीमाएं तोड़कर एक अदृश्य खतरे के रूप में हमारे आसपास फैला हुआ है। वायु, जल, मिट्टी और ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ रासायनिक और औद्योगिक प्रदूषण नई चुनौतियाँ बनकर उभरे हैं। महानगर ही नहीं, अब छोटे शहर भी प्रदूषण की चपेट में हैं। नदियाँ औद्योगिक कचरे से विषाक्त हो रही हैं, हवा में जहरीले तत्व बढ़ रहे हैं, और ध्वनि प्रदूषण मानसिक स्वास्थ्य पर गहरी चोट पहुंचा रहा है। रासायनिक इकाइयों की ढीली सुरक्षा संभावित दुर्घटनाओं की आशंका को लगातार बढ़ा रही है। प्रदूषण की यह व्यापकता बताती है कि यह किसी एक क्षेत्र या वर्ग की समस्या नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के जीवन से जुड़ा गंभीर संकट है।
इस स्थिति से निपटने के लिए केवल नियमों की नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और जन-सहभागिता की भी आवश्यकता है। रासायनिक और औद्योगिक इकाइयों में आधुनिक सुरक्षा मानकों का अनिवार्य रूप से पालन हो। वायु और जल प्रदूषण पर निगरानी के लिए स्मार्ट तकनीक और रियल-टाइम मॉनिटरिंग को बढ़ावा दिया जाए। कचरा प्रबंधन सुव्यवस्थित और वैज्ञानिक हो, खासकर प्लास्टिक, ई-वेस्ट और मेडिकल वेस्ट के मामले में। सौर, पवन और जैव-ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को व्यापक रूप से अपनाया जाए। सार्वजनिक परिवहन को मजबूत किया जाए ताकि निजी वाहनों का दबाव कम हो और वायु प्रदूषण घटे। सबसे महत्वपूर्ण, समाज के हर वर्ग में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता बढ़े ताकि यह किसी सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक जन-आंदोलन का रूप ले सके।
भोपाल की त्रासदी हमें यह सिखाती है कि विकास तभी सार्थक और टिकाऊ है जब वह सुरक्षित और मानवीय हो। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ का परिणाम हमेशा विनाशकारी होता है। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस केवल स्मरण का दिन नहीं, बल्कि भविष्य को सुरक्षित बनाने का संकल्प दिवस है कि ऐसी त्रासदी दोबारा न हो, न भोपाल में और न दुनिया के किसी भी कोने में।
आज जरूरत केवल भाषणों या औपचारिकताओं की नहीं, बल्कि ठोस संकल्प और निरंतर प्रयास की है। प्रदूषण के विरुद्ध हमारा हर छोटा कदम पेड़ लगाना, प्लास्टिक कम करना, स्वच्छ ऊर्जा अपनाना, और उद्योगों को जवाबदेह बनानाl अगली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और स्वस्थ धरती देने की दिशा में बड़ा योगदान है। भोपाल गैस त्रासदी का मूल संदेश यही है कि पर्यावरण की सुरक्षा, मानव सुरक्षा की पहली और सबसे महत्वपूर्ण शर्त है।

Karan Pandey

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