
रमता जोगी, बहता पानी एक से,
साधू – सन्यासी भी चलते फिरते,
जीवन की रीति नदी के बहाव जैसे
जिनको कभी भी रोक नहीं सकते।
यदि जोगी सन्यासी के पैर थमे,
तो ज्ञानगंगा का स्रोत अवरुद्ध हो,
उस जीवन का लक्ष्य खो जाएगा,
रुकने से पानी शुद्ध न रह पाएगा।
क्या खूब कहावत है कि
रमता जोगी, बहता पानी,
मानव जीवन की कहानी,
परिवर्तन की है निशानी।
निर्जीव चीजों से भी माया मोह,
हम उनके अभ्यस्त हो जाते हैं,
जीवन सुविधाजनक लगता है,
माया मोह का भाष नहीं होता है।
जब वह चीज छोड़ना पड़ता है,
तब हमको एहसास होता है कि
माया वश मोहपाश में बंध गये,
इसलिए वास्तविकता भूल गये।
हमारे शास्त्रों में अकारथ ही नही
कहा गया है कि जोगी रमता हुआ
पानी बहता हुआ अच्छा लगता है,
रुकने पर पवित्र नहीं रह पाता है।
परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है,
आदित्य हर परिवर्तन शंकाभय,
द्वंद और उहापोह लेकर आता है,
परंतु परिवर्तन ही गति लाता है।
- डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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