क्या क्या दिखलाया जाता भोली
भाली भारतवर्ष की हमारी जनता को,
हिंसा खुलेआम नंगापन, छल कपट,
नीचा दिखलाना भाई का भाई को।
जो सिखलाया था हमारे पुरखों ने,
पैसों की लिये भूल रहे संस्कार सारे,
गीता, रामायण, महाभारत की शिक्षा
छोड़ चले हैं पैसों की ख़ातिर हम सारे।
सास बहू के झगड़े होते, कहीं बाप का बेटों से,
भाई भाई का दुश्मन है, दिखलाते फ़िल्मों से,
लुटे बेटियों की इज़्ज़त,कहीं जलायी जाती हैं,
पैसों की ख़ातिर मित्रता ख़त्म की जाती है।
श्री राम का त्याग भूल कर उनके
नाम की हम माला जपते रहते हैं,
श्रीकृष्ण का मित्रता का दर्शन त्यागा,
सुदामा की मित्रता उदाहरण देते हैं।
हम यह भी भूल गए हैं कि जीवन में
जो भी ज़्यादा हमको मिल जाता है,
वह सब बस विष जैसा ही होता है,
स्वामी विवेकानंद ने यही कहा है।
आदित्य मेरा है उससे ही संतुष्टि हो,
बढ़ा चढ़ाकर बतलाना भ्रांति हो,
ईर्ष्या से मन को शांति नहीं मिलती,
गौतम बुद्ध ने कहा, प्रेम ही पूजा होती।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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