

भारत की परंपरा गतिशील है और इसी गतिशीलता में उसका जीवन-स्रोत निहित है: प्रो आनंद प्रकाश
मानसिक स्वास्थ्य एवं भारतीय ज्ञान परंपरा विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “मानसिक स्वास्थ्य एवं भारतीय ज्ञान परंपरा : योग एवं अन्य दर्शनों का योगदान” तथा 13वीं प्रो. एल.बी. त्रिपाठी स्मृति व्याख्यान श्रृंखला का मंगलवार को सफलतापूर्वक समापन हुआ।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात मनोवैज्ञानिक प्रो. आनंद प्रकाश ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित योग, ध्यान, आत्मनियंत्रण और भावनात्मक संतुलन आज भी मानसिक स्वास्थ्य एवं मनोविज्ञान की चुनौतियों का प्रभावी समाधान प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने कहा कि परंपरा का वास्तविक स्वरूप उसकी चलनशीलता है, और भारत की परंपरा इसी गतिशीलता में जीवित है।
प्रो. प्रकाश ने अपने संबोधन में कहा कि ज्ञान का वर्धन आलोचना व समालोचना में होता है। समस्या अथवा रोग का मूल कारण अविद्या है और निरीक्षण क्षमता (Observation Power) के लिए मन का एकाग्र होना आवश्यक है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अकादमिक उत्कृष्टता और शोध की प्रगति के लिए पीयर रिव्यू सर्वोत्तम माध्यम है।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्रो. धनंजय कुमार के स्वागत भाषण से हुआ। प्रो. अनुभूति दुबे ने प्रो. एल.बी. त्रिपाठी स्मृति व्याख्यान श्रृंखला की महत्ता का परिचय कराया। संगोष्ठी की समन्वयक डॉ. विस्मिता पालीवाल ने दो दिवसीय कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए बताया कि इसमें देशभर से 150 से अधिक पंजीकरण हुए तथा 80 से अधिक शोध पत्रों का वाचन हुआ।
पूरे सत्र का सफल संचालन डॉ. गरिमा सिंह ने किया और डॉ. प्रियंका गौतम ने आभार व्यक्त किया।
समापन अवसर पर प्रो. अमृतांशु शुक्ल, प्रो. सीमा त्रिपाठी, डॉ. रश्मि रानी, डॉ. राम कीर्ति सिंह, डॉ. सत्य प्रकाश सिंह, मीडिया प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह, डॉ. मनीष पांडेय, डॉ. पवन कुमार, डॉ. दुर्गावती यादव, डॉ. शिव प्रकाश सिंह सहित विभागीय शोध छात्र उपस्थित रहे।