गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। गौशाला शब्द जेहन में आते ही पशुशाला जैसा लगता है। गाय हमारी माता है हमारे पूज्य वेदों में लिखा है। जहाँ माता निवास करती है वह जगह न घर रहती है न सिर्फ स्थान वह देवस्थान हो जाता है, मंदिर की तरह पवित्र और पूजनीय बन जाती है वह जगह। इसलिए गौमाता के निवास को गौशाला की जगह राष्ट्रश्री गौमाता मंदिर लिखा व संबोधित किया जाये। कलयुग में लोग कहते हैं मंदिरों में पत्थर की मूर्तियाँ हैं। जब वह भोजन कर नहीं सकती तो कैसे उन पाषाण मूर्तियों को भोजन कराएँ ऐसे नास्तिकों के लिए जबाब होंगे ये गौमाता मंदिर। जहाँ गौ माता के साक्षात् दर्शन कर उन्हें अपने हाथों से भोजन कराएँ व परलोक के लिए पुन्य भी अर्जित करें। गौ माता के नाम पर देश के अन्दर कार्यरत सभी गौ माता संगठनों व गौमाता रक्षकों का प्रथम कार्य अब ये होना चाहिए, जहाँ भी गौशाला लिखा है उस पर कालिख पोतकर उसके ऊपर राष्ट्रश्री गौमाता मंदिर लिखने का अभियान छेड़ देना चाहिए। मुझसे पहले यह बात देश में न तो किसी शंकराचार्य ने उठाई न ही किसी धर्माचार्य ने मेरा सभी से अनुरोध है इस कलंक को मिटायें गौ माता को पशु तो इन गौशालाओं ने घोषित कर रखा है इसलिए गौ माता को राष्ट्र माता बनाना है तो गौशाला का नामकरण जरूरी है गौशाला नाम का कलंक हटाना पड़ेगा मिटाना पड़ेगा।
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