July 7, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

पत्रकारिता के क्षेत्र में, जो बिकेगा वही टिकेगा और जो बिक गया वो चल गया

आगरा(राष्ट्र की परम्परा)
आज हमारे देश की पत्रकारिता का प्रेस फ्रीडम इंडेक्स, प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में हम 180 देशो के संगठन में 142 वे स्थान पर हैं। अब आप इसी से अन्दाजा लगाइये कि हमारे देश में पत्रकार और पत्रकारिता कितनी स्वतंत्र है।
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार बृजेश कुमार मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज यानी कि 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जा रहा है क्यों कि हिंदी का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र आज ही के दिन सन 1826 में निकलना शुरू हुआ था। सुना है कि आर्थिक कठिनाइयों के कारण यह समाचार पत्र बहुत दिनों तक टिक नहीं सका और 4 दिसम्बर 1827 को बंद कर दिया गया था। प्रकाशक ने सरकारी सहायता प्राप्त करने की बहुत कोशिश की पर वे इस में सफल नहीं हो पाए। बाद में, सहायता न मिलने के कारण कई अन्य समाचार पत्र भी बंद हुए। यानी कि पत्रकारिता के लिए पहला सबक़ ये था कि जब तक सरकारी सहयोग का जुगाड़ न हो तब तक इस क्षेत्र में पाँव नहीं रखने चाहिए। गोरों के शासन काल में आमदनी न होने के कारण समाचार पत्र बंद हो रहे थे पर स्वतंत्र भारत में समाचार पत्र कमाई के उन्नत साधन के रूप में विकसित हुए हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में, जो बिकेगा वही टिकेगा, अगर आप बिकने के लिए पूरी तरह तैयार हैं तभी इस इस अखाड़े में उतरें। जो नहीं बिके उन पर हुए हमले और संदेहास्पद मौत की गवाही के लिए कोई तैयार नहीं, इतिहास भी नहीं। कुछ उन्नत क़िस्म के पत्रकार उच्चतम सदनों की सदस्यता के लिए बिक गए, मध्यम क़िस्म के विज्ञापन पाकर मालामाल हो गए। चलताऊ क़िस्म के पत्रकार स्थानीय सरकारी कर्मचारियों एवं जन प्रतिनिधियों का भयादोहन कर के गुजर बसर कर रहे हैं। बिके हुए समाचार पत्र फल फूल रहे हैं और ग़ुलाम पत्रकार एक दूसरे को शुभकामनाएँ बाँट रहे हैं। कोई बताएगा कि हिंदी पत्रकारिता, जिस का जन्म 30 मई 1826 को हुआ था, जिंदा है या मर गयी। खैर, काफी लम्बे ,समय से स्वतंत्र व निष्पक्ष पत्रकारिता तो मृतप्रायः है।
क़लमकार संजय साग़र ने सभी को हिन्दी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं व्यक्त करते हुये इस अवसर पर अपनी राय रखते हुये बताया कि, हमारे देश या जनपद में पत्रकारिता स्वतंत्र है क्या? कई मुकदमों में देखा गया हैं कि शासन और प्रशासन स्तर पर कलम को हथकड़ी पहनाने का कोई अवसर नहीं छोडा जाता है? यदि शासन के पक्ष में कबरेज करो तो विपक्ष पेड चैनल और गोदी मीडिया, बिकाऊ पत्रकारिता से नबाजने में एक पल नहीं लगाता हैं, और विज्ञापन की बात कहों तो कोई भी मिस्टर इण्डिया की तरहा नज़र नहीं आता।
अक्सर स्वतंत्र पत्रकारिता में देखा गया हैं, कि यदि कमजोर गरीबों पर खुलकर अत्याचार करने बाले गुंडे, माफिया, अपराधी और शासन की कटु हकीकत दिखाने का साहस कर लिया तो शासन और प्रशासन व अन्य स्तर पर आपके समक्ष परेशानियां खड़ी की जायेगी और परोक्ष रुप से धमकी और झूठे केस आप पर लिखवाये जायेंगे और इस समय उनका साथ कोई नहीं देगा और ग़रीब को न्याय दिलाने के चक्कर में पत्रकार ख़ुद न्याय पाने के लिए अकेले ही कोट कचहरी की जटिल मुश्किलों से झूझता रहेगा। उसके बाद अपराधियों की शह पर अपराधियों के ग़लत काम छुपाने के किये शासन, प्रशासन और कई अन्य स्तर पर उसे पूरी तरह बर्बादी की बाढ़ में झोंक दिया जायेगा। क्या यहीं सच लिखने का इनाम हैं क्या यही है स्वतंत्र पत्रकारिता हैं ?
खैर, इस सब अडचनों के बाद भी देश और जनपद में ईमानदार पत्रकार हर जोखिम और खतरे तथा आर्थिक तंगी से जूझते हुये बहुत हद तक निष्पक्षता के साथ प्रत्येक गरीब ,असहाय ,किसान, मजदूर, पीडित और आमजन मानस की आवाज बनकर शासन, प्रशासन और के सामने खडा रहता है और इनाम में फ़र्ज़ी और झूठे मुक़दमे झेलते हैं। उसके बाद भी लिखते हैं। अपना कर्म और कर्तव्य निरंतर निभाते हैं, उनके सतत और दृढ संकल्प के लिये हम इनका हृदय की असीम गहराइयों से साधुवाद देता हूँ। मेरे प्यारे साथियों को हिन्दी पत्रकारिता दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं।