दीक्षारम्भ हमारी सनातन परम्परा: प्रो. प्रज्ञा चतुर्वेदी
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग में ‘दीक्षारम्भ समारोह’ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए प्रो. राजवंत राव ने कहा कि भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परम्परा में माता एवं गुरु का स्थान सर्वोपरि है। माता और गुरु, मनुष्य के जीवन को सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त करने की दृष्टि प्रदान करते हैं। देव व दानव, दोनों में गुरु का महत्त्व था। देवता जो दिव्य एवं स्वम् सिद्ध थे उन्हें भी मार्गदर्शन हेतु गुरु की आवश्यकता थी। भारतीय परम्परा में श्रावणी पूर्णिमा को दीक्षारम्भ होता है और शारदीय पूर्णिमा को दीक्षान्त होता है। उल्लेखनीय है कि यह परम्परा श्रावणी पूर्णिमा को कृष्ण से संबद्ध करती है।
विभाग की अध्यक्षा प्रो. प्रज्ञा चतुर्वेदी ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि दीक्षारम्भ एवं दीक्षान्त की हमारी सनातन परम्परा रही है। हमारा विभाग भारतीय ज्ञान पम्परा से सम्बद्ध रहा है। विभाग की गौरवपूर्ण परम्परा, विभाग का ध्येय वाक्य और विभाग के वास्तु विन्यास के बारे में छात्रों को अवगत कराया।
प्रो. शीतला प्रसाद सिहं ने विषय के महत्त्व को बताते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं में प्राचीन इतिहास विषय की उपादेयता एवं प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. विनोद कुमार तथा आभार ज्ञापन डॉ. पद्मजा सिंह द्वारा किया गया।
इस अवसर पर प्रो. दिग्विजय नाथ मौर्य द्वारा छात्र-छात्राओं को एंटी-रैगिंग के बारे में जागरूक किया एवं विधिक नियमों की जानकारी दी गई। इसके साथ ही उप्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे नशामुक्ति कार्यक्रम के तहत विभाग में उपस्थित सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं कर्मचारियों ने नशा मुक्ति की शपथ ली।
इस अवसर पर प्रो. दिग्विजय नाथ मौर्य, प्रो. कमलेश कुमार गौतम, प्रो. ध्यानेन्द्र नारायण दुबे एवं डॉ. मणिन्द्र यादव ने नवागत छात्र-छात्राओं को सम्बोधित किया।
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