फल-फूल, पान-सुपाड़ी, मिष्ठान,
मुद्रा गणेश-लक्ष्मी को अर्पण किये हैं,
कलश के जल,अच्छत,रोली आदि
माँ गौरी गणेश को समर्पित किये हैं।
इन सबको ससम्मान सहेज लिया है,
सम्मान सहित उपभोग भी किया है,
मैं मिट्टी का दिया हूँ, रातभर जला हूँ,
अंत में मिट्टी में ही मिलना चाहता हूँ।
दीपावली की अमावस्या बीत गई,
जलाये गये दीपक अब बुझ गये हैं,
दीपकों की बत्तियाँ अब अधजली हैं,
इन्हें सम्मान से विसर्जित करना है।
बुझे दीपकों को एकत्र करना है,
सम्मान के साथ सहेज रखना है,
अमावस्या के अंधेरे को इन्होंने,
टिमटिमाते हुये हमें रोशनी दी है।
आदित्य जग में औरों को जला
कर खुश होने वाले बहुत होते हैं,
पर मिट्टी के ये दीपक तो ख़ुद ही
जलकर जमाने को रोशनी देते हैं।
डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’
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