कुछ आग से और कटान से कैसे रहेंगी पृथ्वी हरी भरी
बहराइच (राष्ट्र की परम्परा)। पृथ्वी हरी भरी रहे व लोगों को शुद्ध वातावरण मिले जिसके के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर के वन विभाग के तहत पौधशाला पर पैसा खर्चा करतीं हैं , बताते चलें कि अब्दुल्ला गंज रेंज में स्थित पौधशाला में लगभग नौ से दस लाख पौधे तैयार करवा के जंगल में रिक्त स्थान पर व ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिवर्ष पौधारोपण करवाया जाता है। कि पर्यावरण का संतुलन बना रहे, और पृथ्वी भी हारी भरी रहें, और हर जीव को शुद्ध वातावरण भी मिलता रहें। यही नहीं आरक्षित अब्दुल्ला गंज रेंज में लगभग चार पौधशाला हैं। एक सिसैया में दूसरा दर्जी गांव तीसरा व चौथा इटहवा भाग एक व दो क्षेत्र फल एक हेक्टेयर में जिसमें लगभग छः वन माली हमेशा कार्यरत रहते हैं। जों की इन पौधशाला में सागौन, जामुन, अमरुद, गुडेल, पाकड़,कन्ज, शीशम बरगद, नीम जैसे विभिन्न प्रजातियों के पौधों की उगाईं का खर्चा सरकार द्वारा लगभग पन्द्रह से बीस लाख तक व्यय किया जाता है। जो इन पौधों को पौधशाला में दिसम्बर माह से पौधे रोपाई के लिये पौधे तैयारी करवाने में लग जाते हैं फिर शासन के आदेश अनुसार जुलाई माह से पौधे रोपित किये जाने लगते हैं। विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से ताकि पृथ्वी हरी भरी रहे। लेकिन कुछ लापरवाह विभागीय अधिकारियों के वजह से कुछ पौधे तो सूख जाते हैं, और जंगल लगने वाली आग में नौधे पौधे जल कर नष्ट हो जाते हैं। और उनकी जीवन लीला समाप्त हो जाती है। सरकार एवं समाजसेवी कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों सहित नदी, नाला, तालाब पोखरा , झील, के किनारे पर्यावरण का अलख जगा कर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न प्रजातियों के पौधे रोपित करवाते रहते हैं। लेकिन कुछ लक्कड़ कट्टे ठेकेदार वन विभाग के अधिकारियों से सांठगांठ कर ग्रामीण क्षेत्रों के फलदार पौधों को फल हीन रोग ग्रस्त जैसे बता कर परमिट जारी करवा लेते या फिर अधिकारियों से मिली भगत कर के काटते रहते हैं। और फिर शिकायत होने पर एक आध पेड़ पर जुर्माना करके रफ़ा दफा कर दिया जाता है। जंगल में भी कुछ विभागीय अधिकारी का ये हाल रहता है, की सरकार द्वारा झाड़ी साफ-सफाई और पौधा निराई गुड़ाई का पैसा आता है लेकिन उस पैसे को बच बचा कर ग्रामीणों से बेगार लेकर उसके बदले में जंगल से उन्हें मोटी मोटी लड़कियां कटवा दी जाती और बेगार वाले मजदूर उस लड़कीयों को लाकर जंगल के नजदीक ईंट भट्ठे पर बेंच देते हैं। और उस के बदले में पैसा लेकर मजदूरी का औसत निकल लेते हैं। अब ग्रीष्म ऋतु होते ही ज़िम्मेदारों की लापरवाही से जंगल आग के आगोश में धधकने लगता है । बताते चलें कि आरक्षित अब्दुल्ला गंज रेंज के खैरहनिया गांव के पास में कम्पार्ट नंबर 6 में व निम्निहारा बीट में दूसरे दिन कम्पार्ट नंबर 7,10,11 में आग लगने के कारण साखू, सागौन, आदि के सैकड़ों पेड़ आग में जल कर राख हो गए। आग की लपट इतनी तेज थी, की जंगल के बाहर किसानों के खेतों तक पहुंच गई ,और आस पास आम की बाग को भी अपने आगोश में ले लिया जिसकी सुचना ग्रामीणो ने डायल 112 नंबर सहित अग्नि शमन केंद्र को दिया, स्थानिये समाजसेवीयो ने जिलाधिकारी व प्रभागीय वनाधिकारी संजीव कुमार को दी , देर शाम को कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया । जिसमें एक वाचर साबित राम आग बुझाते समय आंशिक रूप से झुलस गए थे जिस का उपचार भी अस्पताल में कराया गया। लेकिन अब इस आग की आगोश से वन्य जीव नये रोपित नौधे पौधे जंगली जड़ी बूटी वह वनस्पतियों का कितनी क्षती हुईं है। आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा।
अब्दुल्ला गंज रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी पंकज कुमार साहू से बात कि गई, तो उन्होंने बताया की कुछ किसान जंगल से सटे अपने खेत में गेहूं का डंठल जलाये थे, जिसके कारण से जंगल में आग लग गई, और तेज हवा होने से तथा पर्याप्त संसाधन न होने के कारण से जल्दी आग पर काबू नहीं पाया जा सका और न ही अग्नि यंत्र की गाड़ी जंगल के भीतर जा सकती थी। वहीं जब प्रभागीय वनाधिकारी संजीव कुमार से बात किया गया तो उन्होंने बताया की आग लगने की सुचना मिली है। जल्द ही आग पर काबू पाया जायेगा, लेकिन एक के बाद दूसरे दिन जंगल में आग लगना एवं ग्रामीण क्षेत्रो में बिना परमिट के हो रहे हरे भरे पेड़ों के कटान पर आखिर इसका जिम्मेदार कौन है।
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