शिमला (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंदिरों की आय और दान राशि के उपयोग को लेकर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैंथला की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि मंदिर का धन देवता की संपत्ति है, सरकार का नहीं और ट्रस्टी केवल इसके संरक्षक हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि सभी मंदिर अपनी मासिक आय, परियोजनाओं और ऑडिट की जानकारी सार्वजनिक करें।
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अदालत ने यह भी कहा कि मंदिर के धन का उपयोग केवल धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक सुधार और तीर्थयात्रियों के कल्याण जैसे उद्देश्यों के लिए हो सकता है। सरकारी योजनाओं, सड़कों, पुलों और भवन निर्माण पर मंदिर का पैसा खर्च नहीं होगा।
कोर्ट ने मंदिरों को समाज सुधार के केंद्र बनाने पर जोर देते हुए कहा कि वे अंतरजातीय विवाह, शिक्षा, खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करें, जिससे युवा पीढ़ी मंदिरों से जुड़ सके।
भाषा एवं संस्कृति विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल के 12 प्रमुख मंदिरों से 10 साल में 361 करोड़ रुपये की आय हुई है। इनमें ज्वालामुखी, तारा देवी, संकटमोचन और बाबा बालक नाथ मंदिर शामिल हैं।
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हाईकोर्ट ने कहा कि मंदिर केवल पूजा के स्थल नहीं, बल्कि सेवा, शिक्षा और समाज उत्थान के केंद्र बन सकते हैं, जो हिंदू धर्म की करुणा और समावेशिता की भावना को आगे बढ़ाएं।