April 26, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

गुरू आज्ञा ईश वरदान

माँ की गोद, पिता की छत्रछाया में,
जग के सारे तीरथ धाम बसते हैं,
माता-पिता की निशिदिन सेवा से,
तीनों लोकों के सारे पुण्य मिलते हैं।

गुरू आज्ञा ईश वरदान होती है,
सेवा बड़ों की भविष्य सँवारती है,
परहित – संकल्प संतुष्टि देता है,
प्रेम मार्ग ईश्वरीय अनुभूति देता है।

महँगी घड़ी पहन करके देख ली,
वक़्त तो मेरे हिसाब से नही चला,
हम दिल दिमाग़ साफ़ रखते आये,
क़ीमत मुखौटों की है, पता चला।

ईश्वर नहीं है तो ज़िक्र क्यों करते,
ईश्वर है तो फिर फ़िक्र क्यों करते,
ये बात हमें अपनों से दूर करती है,
एक तो अहम् और दूसरा वहम् है।

धन से सुख ख़रीदा नहीं जा सकता,
दुख का कोई ख़रीददार नहीं होता,
आदित्य सुख-दुःख तो एहसास हैं,
अधिक चाहत की ये वजह होते हैं।

  • डा. कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’