Wednesday, December 10, 2025
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फायर सेफ्टी से लेकर बिल्डिंग बायलॉज तक—क्यों फेल हो रही है भारत की सुरक्षा व्यवस्था?

भीड़भाड़ वाले प्रतिष्ठानों में सुरक्षा संकट- भ्रष्टाचार की मिलीभगत क़ी संरचनात्मक भूमिका?

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत तेज़ी से शहरी विकास,बुनियादी ढांचे के विस्तार और जनसंख्या की बढ़ती आर्थिक भागीदारी के दौर से गुजर रहा है,जिसके परिणामस्वरूप देश के लगभग 780 जिलों में विशाल संख्या में मॉल,मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगें, होटल, रेस्टोरेंट,नाइट क्लब, सिनेमाहॉल,सुपर बाजार,कोचिंग संस्थान, स्कूल, कॉलेज और मनोरंजन केंद्रों का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। इन स्थानों पर प्रतिदिन हजारों-लाखों नागरिक आते हैं, जो आधुनिक जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। लेकिन इसी विकास की यात्रा के भीतर एक गंभीर प्रश्न भी मौजूद है,भ्रष्टाचार,गैर-जवाबदेही, फायर-सेफ्टी की अनदेखी और प्रशासनिक निरीक्षण की कमी, जो कई बार बड़े हादसों का कारण बन जाती है।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं क़ि हाल ही में गोवा के नाइट क्लब में लगी भयंकर आग, जिसमें 25 लोगों की मृत्यु हुई, इस समस्या का चरम उदाहरण है।इस हादसे ने यह उजागर कर दिया कि देश के अनेक जिलों में बड़ी संख्या में ऐसे व्यावसायिक प्रतिष्ठान सक्रिय हैं, जिनके पास न तो वैध फायर-सेफ्टी प्रमाणपत्र हैं,न बिल्डिंग बायलॉज की स्वीकृति, न ही नगर परिषद/महानगर पालिका/राज्य सरकार द्वारा जारी आवश्यक लाइसेंस। यह स्थिति केवल प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम नहीं है,बल्कि भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों, लाइसेंसों की अवैध खरीद- फरोख्त,और निरीक्षण एजेंसियों की मिलीभगत का दुष्परिणाम है। जिस प्रकार गोवा के नाइट क्लब को बिना उचित सुरक्षा प्रोटोकॉल के चलने दिया गया,उसी प्रकार देश के विविध हिस्सों में भीड़भाड़ वाले संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा मानकों का खुला उल्लंघन आम हो चुका है, जिसे रोकने के लिए अब कलेक्टर-स्तर पर स्वत: संज्ञान आधारित निरीक्षण व्यवस्था लागू करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बन चुका है।
साथियों बात अगर हम भीड़भाड़ वाले प्रतिष्ठानों में सुरक्षा संकट और भ्रष्टाचार की संरचनात्मक भूमिका को समझने की करें तो, भारत में एक ओर जहांआधुनिक मॉल, कैफे, मल्टीप्लेक्स और मनोरंजन केंद्र शहरों की पहचान बन रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन प्रतिष्ठानों की सुरक्षा स्थिति भयावह रूप से कमजोर पाई जाती है।कई जिलों में यह पाया गया है कि(1) फायर-सेफ्टी ऑडिट वर्षों तक नहीं हुए,(2) आपातकालीन निकास अवरुद्ध हैं,(3)फायर-अलार्म और स्प्रिंकलर कार्यरत नहीं (4) बिल्डिंग बायलॉज का पालन न्यूनतम,(5)ओवरलोडेड इलेक्ट्रिकल वायरिंग,(6)अवैध निर्माण और अवैध विस्तार,(7) बिना अनुमति नाइट क्लब, बार, बेसमेंट रेस्टोरेंट और कोचिंग केंद्र संचालन,(8)और सबसे चिंताजनक- भ्रष्टाचार के चलते फर्जी लाइसेंस जारी करना।भारतीय नगर प्रशासन या स्थानीय निकायों में भ्रष्टाचार नई बात नहीं है, लेकिन जब यह भ्रष्टाचार नागरिक जीवन के मूलभूत अधिकार, सुरक्षित वातावरण को खतरे में डाल दे, तब यह केवल रिश्वत का मसला नहीं रहता,बल्कि नागरिकों की हत्या नरसंहार जैसी परिस्थितियों को जन्म देने वाली संरचनात्मक विफलता बन जाता है।गोवा की घटना हो या दिल्ली के मुंडका फायर हादसा, मुंबई का कमला मिल फायर, सूरत का कोचिंग सेंटर मामला,हर घटना के पीछे एक सामान्य कारण दिखाई देता है:भ्रष्टाचार के बदले मिले फर्जी प्रमाणपत्र और नियमों के क्रियान्वयन में गहरी प्रशासनिक उदासीनता?भारत में नागरिक सुरक्षा अधिनियम, फायर सेवा अधिनियम, नगर बायलॉज और राष्ट्रीय भवन संहिता जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन जब इन कानूनों के पालन की जिम्मेदारी संभालने वाला निचला -मध्यम प्रशासन ही भ्रष्टाचार में संलिप्त हो जाए, तो सुरक्षा व्यवस्थाएँ केवल कागज़ी बनकर रह जाती हैं। इसलिए यह मॉडल अब अप्रभावी माना जा रहा है और आवश्यक है कि निरीक्षण का अधिकार सीधे जिलाधिकारी /कलेक्टर के हाथों में आए, जो जिले का सर्वोच्च कार्यपालिका अधिकारी होता है और भ्रष्टाचार- रोधी शक्तियाँ भी रखता है।
साथियों बात अगर हम कलेक्टर द्वारा स्वत: संज्ञान आधारित आकस्मिक निरीक्षण की अपरिहार्यता को समझने की करें तो,प्रत्येक जिले में कलेक्टर स्वयं आकस्मिक निरीक्षण करें,वह वर्तमान भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में एक अत्यंत व्यवहार्य, प्रभावी और नागरिक-हितकारी समाधान है।इसका कारण स्पष्ट है (1) कलेक्टर भ्रष्टाचार-रोधी शक्तियों से लैस होता है।(2) स्थानीय निकाय, नगर परिषद या निगम पर होने वाले राजनीतिक दबाव का प्रभाव कलेक्टर पर कम पड़ता है। (3) स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति के कारण कलेक्टर किसी भी संस्था पर तात्कालिक जांच और कार्रवाई कर सकता है। (4) आकस्मिक निरीक्षण भ्रष्टाचार की रीढ़ तोड़ने वाला सबसे प्रभावी उपाय है।(5) कलेक्टर की प्रत्यक्ष निगरानी से स्थानीय अधिकारियों की जवाबदेही स्वत: बढ़ जाती है।देश में अक्सर देखा गया है कि फायर सेवा विभाग, नगर निगम या लाइसेंसिंग अधिकारी भ्रष्टाचार के कारण बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को नियमों के उल्लंघन के बावजूद ‘क्लीन चिट’ दे देते हैं। ऐसे में यदि कलेक्टर हर जिले में-मॉल, होटल,नाइट क्लब,बड़े रेस्टोरेंट मल्टीप्लेक्स सुपर बाजार,स्कूल/कॉलेज,कोचिंग सेंटर,और उच्च भीड़- घनत्व वाली इमारतों का स्वत: संज्ञान लेकर निरीक्षण करें, तो नागरिक सुरक्षा का स्तर कई गुना बढ़ सकता है कलेक्टर- स्तरीय निरीक्षण से यह भी सुनिश्चित होगा कि फर्जी सर्टिफिकेट रखने वाले प्रतिष्ठानों की तुरंत पहचान की जाए और उन पर दंडात्मक कार्रवाई हो। गोवा हादसा इसी बात का प्रमाण है कि यदि जिला प्रशासन सक्रिय रूप से ऐसे प्रतिष्ठानों पर समय- समय पर निगरानी करता, तो शायद 25 निर्दोष नागरिकों की जान बच सकती थी।
साथियों बात अगर हम भीड़- उपस्थितियों वाले संस्थानों पर अनिवार्य नियमित निरीक्षण: एक नई राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता इसको समझने की करें तो, प्रत्येक जिले में सभी ऐसे संस्थानों पर जहाँ बड़ी संख्या में आम जनता एकत्रित होती है, नियमित निरीक्षण व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। यह निरीक्षण त्रैमासिक, अर्धवार्षिक अथवा वार्षिक न होकर व्यवसाय के प्रकार, भीड़ की मात्रा, जोखिम स्तर और भवन संरचना के आधार पर होना चाहिए।उदाहरण के लिए,नाइट क्लब, बार, बेसमेंट रेस्टोरेंट मासिक निरीक्षण,मल्टीप्लेक्स, मॉल, भीड़भाड़ बाजार हर तीन माह में निरीक्षण,स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सेंटर सत्रारंभ से पहले अनिवार्य निरीक्षण होटल और गेस्टहाउस प्रत्येक छह माह में निरीक्षण इन निरीक्षणों में निम्न बिंदुओं की सुनिश्चितता आवश्यक है (1) फायर सेफ्टी उपकरणों की कार्यशीलता (2) आपातकालीन निकास मार्ग (3)भीड़ नियंत्रक तकनीक (4) इलेक्ट्रिकल वायरिंग की सुरक्षा(5) एलपीजी/गैस सुरक्षा(6) बिल्डिंग बायलॉज का अनुपालन (7) सुरक्षा कर्मियों की प्रशिक्षित टीम(8) सीसीटीवी और नियंत्रण प्रणाली,भारत में कई हादसों की मुख्य वजह यह रही है कि ऐसे निरीक्षण या तो कभी हुए ही नहीं, या निरीक्षण रिपोर्ट भ्रष्टाचार के कारण कागज़ में पास दिखाई गई। इसलिए, कलेक्टर-स्तरीय निगरानी के साथ-साथ डिजिटल पब्लिक इन्स्पेक्शन रजिस्टर की व्यवस्था भी बनाई जानी चाहिए ताकि जनता खुद जान सके कि उनके जिले के प्रतिष्ठानों ने कौन-कौन से सुरक्षा प्रमाणपत्र प्राप्त किए हैं।
साथियों बात अगर हम सुरक्षा नियमों के पालन की सार्वजनिक घोषणा इंडिया सेफ्टी चार्ट का अनिवार्य प्रदर्शन इसको समझने की करें तो,विश्व के कई देशों में, जैसे सिंगापुर, जापान, कनाडा और जर्मनी, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को एक पब्लिक सेफ्टी चार्ट प्रदर्शित करना अनिवार्य होता है। भारत में भी ऐसा मॉडल अपनाने का समय आ चुका है।इस भारत सुरक्षा चार्ट / इंडिया सेफ्टी कम्पलायंस चार्ट में निम्नलिखित जानकारी शामिल होनी चाहिए- (1)अंतिम फायर सेफ्टी प्रमाणन की तिथि (2) बिल्डिंग बायलॉज अनुपालन स्तर (3) इमरजेंसी निकास योजना(4)अग्निशमन उपकरणों की क्षमता व स्थिति (5) अधिनियमों के अंतर्गत उठाए गए सुरक्षा कदम (6)स्वच्छता और विद्युत सुरक्षा जांच की तिथि (7) कलेक्टर अथवा अधिकृत अधिकारी का डिजिटल सत्यापन, इस चार्ट को रेस्टोरेंट, मॉल, होटल, थिएटर, संस्थानों व नाइट क्लब के प्रवेश द्वार पर अनिवार्य रूप से लगाया जाना चाहिए, ताकि नागरिक स्वयं जान सकें कि जिस स्थान पर वे जा रहे हैं, वह सुरक्षित है या नहीं। यदि कोई प्रतिष्ठान इस चार्ट को प्रदर्शित नहीं करता, तो उसे स्वत: जोखिम-श्रेणी में रखा जाए और कलेक्टर कार्रवाई करें।
साथियों बात अगर हम लाइसेंस उल्लंघन, अवैध संचालन और गैर-अनुपालन पर कठोर कार्रवाई इसको समझने की करें तो,बिना अनुमति या नियमों का उल्लंघन करने वाले संस्थानों पर तत्काल लाइसेंस रद्द किया जाए,एक व्यावहारिक और नागरिक- अधिकार आधारित मांग है। भारत में कई बार देखा गया है कि अवैध ढंग से संचालित प्रतिष्ठान- (1)राजनीतिक संरक्षण, (2)पुलिस/नगर निकाय भ्रष्टाचार,(3)या सिस्टम की ढिलाई, के कारण वर्षों तक चलाते रहते हैं। जबकि वे हजारों लोगों की जान खतरे में डालते हैं।यदि कलेक्टर स्तर पर निम्न नीतियाँ लागू की जाएँ-(1)पहली बार में ₹10 लाख तक का जुर्माना+15 दिन का निलंबन (2) दूसरी बार में लाइसेंस का स्थायी रद्दीकरण(3)तीसरी बार में आपराधिक मुकदमा (आईपीसी 304, 336, 337, 338 के तहत) तो ऐसे अपराधों पर अंकुश लगेगा।नियमों का उल्लंघन केवल प्रशासनिक गलती नहीं है,यह सीधे-सीधे नागरिक जीवन को खतरे में डालने की साजिश है, जो गंभीर दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। कलेक्टर यदि इसपर कड़ाई से कार्रवाई करें, तो भ्रष्टाचार की श्रृंखला स्वत: टूट जाएगी।
साथियों बात अगर हम भ्रष्टाचार इन सभी हादसों की जड़ क़ा कारण है इसको समझने की करें तो, जनता जानती है,ऐसी लापरवाही बिना नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार की मिलीभगत के संभव ही नहीं। यह एक संरचनात्मक समस्या है, जिसमें शामिल होते हैं-निरीक्षण अधिकारी,लाइसेंस जारी करने वाले अधिकारी,स्थानीय निकाय कर्मचारी,राजनीतिक दबाव,भ्रष्ट ठेकेदार और बिल्डर और कभी-कभी पुलिस जब भ्रष्टाचार नियमों का स्थान ले लेता है तो,(1) आग सुरक्षा कागजों में पास हो जाती है,(2)लाइसेंस रिश्वत के आधार पर जारी हो जाता है,(3)निरीक्षण रिपोर्ट फर्जी तैयार हो जाती है,(4)अवैध निर्माण को अनदेखा कर दिया जाता है,(5) और किसी दुर्घटना से पहले कोई कार्रवाई नहीं होती।गोवा का नाइट क्लब हादसा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है, जहाँ,(1) अवैध विद्युत कनेक्शन,(2)फर्जी लाइसेंस,(3)ओवर-कैपेसिटी भीड़,(4)आपातकालीन निकास बंद,और (5)फायर सिस्टम गैर- कार्यशील,जैसी खामियाँ बाद में सामने आईं। यह सब केवल एक ही चीज़ की ओर इशारा करता है -भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता।इसलिए भारत को अब एक ऐसी प्रणाली अपनानी चाहिए जिसमें-भ्रष्टाचार का जोखिम न्यूनतम,निरीक्षण डिजिटल,लाइसेंसिंग पारदर्शी, और जिम्मेदारी शीर्ष स्तर पर निश्चितहो।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत वर्तमान में एक अहम मोड़ पर खड़ा है। आर्थिक विकास की तेज़ रफ्तार, शहरीकरण का विस्तार, और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की बढ़ती संख्या के बीच नागरिक सुरक्षा की चुनौती दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। गोवा नाइट क्लब की आग में 25 लोगों की दर्दनाक मृत्यु इस बात की चेतावनी है कि यदि हम भ्रष्टाचार, प्रशासनिक लापरवाही और निरीक्षण तंत्र की विफलताओं को तुरंत ठीक नहीं करते, तो ऐसे हादसे भविष्य में भी सामने आते रहेंगे इसलिए आवश्यक है कि कलेक्टर-स्तरीय स्वत: संज्ञान अनिवार्य नियमित निरीक्षण,सार्वजनिक सुरक्षा चार्ट का प्रदर्शन,उल्लंघन पर कठोर कार्रवाई,भ्रष्टाचार-विरोधी तंत्र का सशक्तिकरण उपायों को लागू किया जाए।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया ।

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