Tuesday, October 14, 2025
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दोनों घरों में नहीं बना खाना आंसुओं की धारा रुकने का नाम नहीं ले रही

सचिन के घर व ससुराल में पसरा रहा सन्नाटा

पुलिस की आवाजाही से लोग घर आने से कतरा रहे है

शाहजहांपुर (राष्ट्र की परम्परा)। घर का चूल्हा ठंडा पड़ा रहा, किसी को खाना खाने की इच्छा ही नहीं हुई। दादी सीमा ग्रोवर रात भर करवटें बदलती रहीं नींद उनकी आंखों से कोसों दूर रही। क्योंकि घर का चहकता पंछी, मासूम फतेह अब घर में नहीं था। फतेह जो पूरे घर का लाडला था, जिसकी किलकारियों से आंगन गूंज उठता था जिसकी नन्ही शरारतें थकान को भी भुला देती थीं। उसकी यादें ही अब रह गई हैं। दादी का दिल बार-बार पूछता है मेरा फतेह कहां है लेकिन जवाब में बस सन्नाटा मिलता है।
फतेह जो पूरे घर की धड़कन था। उसकी मासूम हंसी में घर की रौनक थी, उसके नन्हे कदमों की आहट सुनते ही दादी की थकान मिट जाती थी। मां की गोद उसका संसार था और पापा की ऊंगली थामकर वो मानो पूरी दुनिया जीत लेता था, आज वही आंगन सूना है वही घर अधूरा है। नानी संध्या मिश्रा का घर भी खाली-खाली है। जहां फतेह आते ही रंग भर देता था, हां अब उदासी पसरी हुई है। दीवारें भी जैसे गुमसुम हो गई हैं। वो खिलखिलाहट वो मासूम हंसी अब सिर्फ यादों में गूंजती है। फतेह के बिना घर अधूरा है। मानो आंगन से चांद गायब हो गया हो। उसके नाम से पुकारने पर कोई जवाब आता नहीं। बस आंखों से आंसुओं की बौछार बह निकलती है। फतेह की याद में हर कोई टूट चुका है पर उसकी मासूमियत और प्यारी छवि हमेशा दिलों में जिंदा रहेगी। फतेह तो छोटा था, लेकिन उसके जाने का खालीपन पहाड़ सा बड़ा हो गया है। उसकी याद में हर कोना रो रहा है बिस्तर जहां वो लोट-पोट करता था, खिलौने जो अब बेजान पड़े हैं और वो कपड़े जिनसे अभी भी उसकी मासूम खुशबू आती है।

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