Thursday, November 13, 2025
HomeNewsbeatराजधानी में धमाका: सुरक्षा तंत्र पर बड़ा सवाल, आखिर कब जागेगा सिस्टम?

राजधानी में धमाका: सुरक्षा तंत्र पर बड़ा सवाल, आखिर कब जागेगा सिस्टम?

“जब दिल की धड़कन रह जाती है थम — बड़ा सवाल: सुरक्षा कहां भंग?”

देश की राजधानी एक बार फिर दहशत में है। बम धमाकों की गूंज केवल सड़कों पर नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल में सुनाई दे रही है। महानगरों की भीड़भाड़ वाली गलियों से लेकर बाजारों और मंदिरों तक, अब सुरक्षा का भरोसा डगमगाने लगा है। हर बार की तरह इस बार भी वही सवाल उठ रहा है — आखिर हमारी सुरक्षा एजेंसियां कब तक चेतावनियों को अनदेखा करती रहेंगी?

धमाके के बाद सन्नाटा केवल राजधानी तक सीमित नहीं रहता। यह पूरे देश के दिल को झकझोर देता है। देवरिया जैसे सुदूर जनपदों तक मातम की लहर दौड़ जाती है — किसी माँ की गोद उजड़ती है, किसी बहन की कलाई सूनी हो जाती है। ऐसे हादसे हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या हमने सुरक्षा को सिर्फ औपचारिकता बना दिया है?

🔍 खुफिया तंत्र में खामियां या राजनीतिक उदासीनता?

हर बड़ा धमाका केवल एक चूक नहीं, बल्कि कई स्तरों पर हुई विफलताओं का परिणाम होता है।

खुफिया सूचनाओं का सही विश्लेषण न होना

स्थानीय पुलिस और केंद्र के बीच समन्वय की कमी

सीमाओं की निगरानी में तकनीकी खामियाँ

नीतिगत इच्छाशक्ति की कमी

इन्हीं कमजोरियों का फायदा आतंकवादी संगठन उठा लेते हैं। नकली पहचान, सोशल मीडिया नेटवर्क, काले धन और स्थानीय मदद के सहारे वे अपने मंसूबे पूरे कर जाते हैं। सवाल यह है कि जब हर बार यही पैटर्न दोहराया जाता है, तो क्या सिस्टम भी उसी पुराने ढर्रे पर चलता रहेगा?

🛡️ समाधान कठिन नहीं, संकल्प चाहिए

अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक समन्वय मजबूत हो, तो समाधान असंभव नहीं।
कुछ जरूरी कदम तुरंत उठाए जा सकते हैं:

इंटेलिजेंस नेटवर्क को साझा और समन्वित बनाना

स्थानीय पुलिस को अत्याधुनिक तकनीक और ट्रेनिंग उपलब्ध कराना

भीड़भाड़ वाले इलाकों में हाईटेक सर्विलांस सिस्टम और बायोमेट्रिक चेतावनी तंत्र लगाना

सामुदायिक जागरूकता और नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देना

सुरक्षा केवल हथियारों से नहीं आती, बल्कि विश्वास, तकनीक, और पारदर्शी शासन से बनती है।

अब आश्वासन नहीं, जवाबदेही चाहिए

हर धमाके के बाद “दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा” जैसे बयान अब खोखले लगने लगे हैं। जनता को अब जवाब चाहिए — किसकी लापरवाही ने मासूम जिंदगियाँ लीं, किसने सुरक्षा चेतावनियों को दरकिनार किया?
यह समय है कि सरकार और एजेंसियां मिलकर ठोस सुधार लागू करें, ताकि फिर किसी माँ की गोद सूनी न हो और किसी राजधानी की धड़कन थमे नहीं।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments