सिकन्दरपुर /बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। भक्तों का भाव रखने के लिए भगवान अपना प्रण भंग कर देते हैं, इस बात की पुष्टि भीष्मार्जुन युद्ध से की, कि भीष्म की प्रतिज्ञा पर कृष्ण को बरबस शस्त्र उगकर शस्त्रन उठाने की अपनी प्रतिज्ञां तोड़नी पड़ी। भगवान अपने भक्तों की रखवाली वैसे ही करते हैं जैसे माँ अपने पुत्र की रखवाली करती है, किन्तु आज के परिवेश में कितनी बिडम्बना है कि जो माँ अपने पुत्र के लिए यावज्जीवन रखवाली करती है, उस माँ के लिए पुत्र एक गिलास पानी तक नहीं देता जबकि माँ के प्रति उपेक्षा अवज्ञा अवहेलना अनिष्टकारिणी है, इसे भगवान भी क्षमा नहीं करते। ये बातें सुप्रसिद्ध कथा-प्रवाचिका साध्वी गौरी गौरांगी ने कहीं। श्री वनखण्डीनाथ (श्री नागेश्वर नाथ महादेव) मठ इहाँ ग्राम वपत्रालय डूहाँ बिहरा, जनपद बेलिया में उक्त मठ के यशस्वी संस्थाध्यक्ष पूज्य स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज द्वारा आयोजित ४० दिवसीय एवं १०८, कुण्डीय अद्वैत शिवशक्ति कोटि होमात्मक राजसूय महायज्ञ में भक्तिभूमि अयोध्या से चलकर यहाँ पधारी हुई गौरांगी जी व्यासपीठ से सुधी श्रोताओं को सम्बोधित कर रही थीं। उन्होंने एक दृष्टान्त देकर समझाया कि किसी व्यक्ति की मरणासन्न पत्नी अपने पति परिजन से बोली- “मैं तो अब इस दुनिया से जा ही रही हूँ किन्तु मेरे मरने के बाद मेरे बच्चों पर जरूर ख्याल रखना जीवन की अन्तिम श्वाँस तक माँ को अपनी सन्तान पर ध्यान रहता है। माँ पर कन्द्रित कथा-प्रवचन में गौरांगी जी ने कहा कि दुलार प्यार का प्रदर्शन चाहे कोई कितना भी कर ले किन्तु माता के प्रेम की बराबरी कदापि नहीं कर सकता :- केहू केतनो दुलारी बाकी माई ना होई।” स्वयं भूखे रहकर माँ अपने हिस्से का भोजन बच्चे को खिला देती है। देवकीनन्दन भगवान कृष्ण ने अर्जुन का स्वजनविमोह भंग करने के लिए उन्हें अपने विराट (एक ब्रह्माण्ड) रूप का दर्शन कराया किन्तु उन्होंने अपने महाविराट का दर्शन माता कौशल्या और माता यशोदा को ही कराया, जिसमें अनन्त विश्व ब्रह्माण्ड भरे पड़े हैं। कौशल्या माँ अपनी जाने-अनजान हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा माँगती हैं। वैसे तो बहुतेरे कवियों ने वात्सल्य रस का वर्णन किया है किन्तु जितना सरस, सुन्दर, सुमधुर और सांगोपांग वर्णन सूरदास जी ने कर दिया है उतना किसी कवि ने नहीं किया।
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