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राष्ट्रीय व्याख्यान श्रृंखला का पंचम दिवस सफलतापूर्वक सम्पन्न
गोरखपुर/नवनीत मिश्र (राष्ट्र की परम्परा)। राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर में संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित भारतीय संस्कृति अभिरूचि पाठ्यक्रम के सप्त दिवसीय राष्ट्रीय व्याख्यान श्रृंखला के पंचम दिवस का शुभारंभ मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। व्याख्यान श्रृंखला में रविवार के विषय ‘‘ दुनिया को रोशन करता बौद्ध धम्म ‘‘ एवं ” बुद्ध के आर्थिक सिद्धान्त ‘‘ रहा। जिसके मुख्य वक्ता एवं विषय विशेषज्ञ आचार्य डाॅ. राजेश चन्द्रा रहे। विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर रामनरेश चौधरी, पूर्व संकाय अध्यक्ष, विधि संकाय, गोरखपुर विश्वविद्यालय एवं डाॅ. योगश प्रताप सिंह, उप निदेशक, अशफाक उल्ला खाॅ प्राणि उद्यान (चिड़ियाघर) गोरखपुर की उपस्थिति रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर डाॅ. सुजाता गौतम, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी व कार्यक्रम का सफल संचालन रीता श्रीवास्तव, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी कलाकार, गोरखपुर ने किया।
प्रथम सत्र के विषय विशेषज्ञ डाॅ. राजेश चन्द्रा ने ‘‘ दुनिया को रौशन करता बुद्ध धम्म ‘‘ पर विस्तारपूर्वक अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पालि ग्रन्थों में बुद्ध को आदित्यबन्धु, आदित्यवंशी कहा गया है। आदित्य अर्थात सूर्य। बुद्ध और उनका धम्म सूर्य की तरह है, सारी दुनिया के लिए, न केवल मुनष्यमात्र के लिए बल्कि प्राणिमात्र के लिए, बुद्ध धम्म सूर्य है। सूर्य नष्ट नहीं होता, एक जगह वह अस्त होता दिखता है, ठीक उसी समय वह कहीं उदय हो रहा होता है। लोग कहते हैं कि बुद्ध धम्म भारत से नष्ट हो गया। यह कथन त्रुटिपूर्ण है। बुद्ध धम्म भारत से नष्ट नहीं हुआ, बल्कि सूरज की तरह अस्त हुआ, लेकिन उसी समय उसका श्रीलंका, थाईलैण्ड, म्यानमार आदि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में उदय भी हुआ। आज दुनिया की दो तिहाई आबादी बौद्ध है। मैक्स मूलर तो यहाँ तक कहते हैं कि ईसाई लोग अपनी संख्या ज्यादा दर्शाने को लिए बौद्धों की संख्या कम करके बताते हैं, जबकि दुनिया में सर्वाधिक संख्या बौद्धों की है।
पश्चिमी देशों में आज बुद्ध धम्म को फास्टेस्ट ग्रोइंग रिलीजन, सबसे तेज बढ़ता हुआ धर्म कहा जा रहा है। समाजशास्त्रियों का अनुमान है कि जिस तेजी से बुद्ध धम्म फैल रहा है, वर्ष 2050 तक आधा युरोप बौद्ध हो जाएगा। अमेरिका के बर्कले शहर को बुद्धिस्ट कैपिटल ऑफ अमेरिका कहा जाता है। अद्यतन आंकड़े बता रहे हैं कि अमेरिका में बौद्धों के सभी निकायों को मिला कर लगभग 500 बुद्ध विहार हैं, फ्रांस में 200, जर्मनी में 600, कनाडा में 500, इंग्लैण्ड में 190, आस्ट्रेलिया में 200, रूस में 40, चीन में 34,000, जापान में 77,000, थाईलैण्ड में 42,626, दक्षिण कोरिया में 20,000 बुद्ध विहार हैं। आप इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि बु्द्ध धम्म दुनिया की कितनी समृद्ध विरासत है।
भारत में तो अधिकांश लोग बुद्ध धम्म को जातीय नजरिये से देखते हैं लेकिन वैश्विक स्तर पर विख्यात व्यक्तित्व बुद्ध धम्म में दीक्षा ले रहे हैं। हाॅलीवुड के फिल्म स्टार रिचर्ड गेरे, हैरीसन फोर्ड, ओरलैण्डो ब्लूम, कोनू रीव्स, उमा थुरमैन जैसे विख्यात व्यक्तियों ने बुद्ध धम्म की दीक्षा ले ली है। फिल्म निर्माता ओलीवर स्टोन, पाॅप गायिका टीना टर्नर, पाॅप गायक एडम आउच, जाॅज संगीतज्ञ हरबी हैनकाॅक, गोल्फ चैम्पियन टाइगर वुड्स, सासर खिलाड़ी रोबर्टो बैग्गियो, एनबीए कोच फिल जैक्सन, कार्ड निर्माता कम्पनी फोर्ड के वर्तमान चेयरमैन विलियम फोर्ड जूनियर इन सब लोगों ने घोषित रूप से बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली है। बुद्ध धम्म की लोकप्रियता का अंदाजा लगा सकते हैं कि स्वीडेन के एक स्कूल में प्रश्नतालिका दे कर छात्रों से एक प्रश्न यह भी पूछा गया कि यदि आप को अपना धर्म चुनने की स्वत्रंतता हो तो आप कौन-सा धर्म चुनना चाहेंगे? 70 प्रतिशत छात्रों ने अपना विकल्प बुद्ध धम्म दिया। भारत को गर्व होना चाहिये कि हम बुद्ध के देश हैं।
दूसरे सत्र में ‘‘बुद्ध के आर्थिक सिद्धान्त‘‘ विषय पर चर्चा करते हुए डाॅ. राजेश चन्द्रा ने कहा कि गौतम बुद्ध की देशनाओं के प्रति आम धारणा यह है कि वे सिर्फ शील, समाधि, प्रज्ञा, मैत्री, करुणा, दया, अहिंसा, दान, ध्यान का उपदेश देते हैं। जबकि वे आर्थिक सिद्धांतों के प्रति कितने सुस्पष्ट हैं, यह जानना भी रोचक एवं हितकर होगा, विशेषकर तब जब दुनिया बार-बार आर्थिक मंदी की चपेट में आ रही है।
मृगदायवन, सारनाथ में अपने प्रथम धम्मोपदेश में भगवान बुद्ध चार आर्य सत्यों का उपदेश करते हैं- दुःख, दुःख का कारण, दुःख का निवारण, और निवारण का मार्ग। दुःख निवारक के मार्ग के रूप में वे आठ अंग बताते हैं, जिन्हें आर्य अष्टांग मार्ग कहा जाता है। उन आठ अंगों में एक अंग है- सम्यक आजीविका। दुःख निवारण के आठ उपायों में ‘सम्यक आजीविका‘ को समाहित करके रखना सबसे बड़ा प्रमाण है कि बुद्ध आजीविका को लेकर कितने गम्भीर हैं।
आजीविकाविहीन व्यक्ति, परिवार, समाज या देश सुखी नहीं हो सकता। आजीविका सम्पन्न व्यक्ति, परिवार, समाज या देश भी सुखी नहीं हो सकता, यदि आजीविका सम्यक नहीं है। बुद्ध सुस्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं कि चोरी, छीना-झपटी, व्यभिचार, हथियार व मादक पदार्थों के क्रय-विक्रय तथा जुए से अर्जित आजीविका असम्यक है। ईमानदारी व श्रम से तथा कुशल साधनों से अर्जित सम्पत्ति ही ‘सम्यक आजीविका‘ है। सम्यक आजीविका ही सुख के आठ उपायों में से एक है।
अपने नवदीक्षित शिष्यों- कौण्डिन्य, वप्प, भद्दीय, अस्सजि, महानाम को चारों दिशाओं में चारिका के लिए भेजते समय बुद्ध के प्रसिद्ध वचन हैं- चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजनहिताय बहुजन सुखाय लोकानुकम्पाय अथ्थाय, यानि हे भिक्खुओं, तुम बहुजनों के हित के लिए, बहुजनों के सुख के लिए, लोक पर अनुकम्पा करने के लिए और उनके अर्थ के लिए चारिका करो। ‘अथ्थाय‘ शब्द ध्यान देने लायक है। वे अपने भिक्खुओं को ऐसा धर्मोपदेश देने के लिए निर्देशित कर रहे हैं, जो बहुजनो के लिए न केवल सुखकर, हितकर है, उन पर अनुकम्पनीय हो, बल्कि उनकी अर्थ वृद्धि में भी सहायक हो, इसलिए कहा है ‘अथ्थाय‘ अर्थात अर्थ के लिए, क्योंकि अर्थविहीन व्यक्ति, परिवार, समाज, देश सुखी नहीं हो सकता है।
पुनः श्रावस्ती में महामंगल सुत्त के संगायन में भगवान बुद्ध मनुष्य के मंगल के अड़तीस उपाय बताते हैं। उन अड़तीस उपायों में आठवां और दसवां उपाय है- शिल्प सीखना, सुशिक्षित होना। जिनके हाथ में शिल्प नहीं, कौशल नहीं, हुनर नहीं, और जो सुशिक्षित नहीं, वह आजीविका सम्पन्न भी नहीं हो सकता। दुनिया के जितने भी समृद्ध देश हैं, वे अपनी शिक्षा व्यवस्था में शिल्प अर्थात कौशल, विशेषकर तकनीकी कौशल (टेक्निकल स्किल) पर सर्वाधिक जोर देते हैं। देश के संविधान शिल्पी डॉ. बीआर अम्बेडकर का सर्वाधिक बल शिक्षा पर था। उनका प्रधान कथन था- शिक्षित बनो!
श्रावस्ती में ही पराभव सुत्त के संगायन में भगवान बुद्ध ने अर्जित सम्पत्ति के नाश के कारणों में एक कारण यह भी बताया है कि लोभी, लालची, फिजूल खर्चीले व्यक्ति को सम्पत्ति का स्वामी बनाने से पतन होता है। पर्याप्त सम्पत्ति होने पर भी दान का स्वभाव न होने से भी सम्पत्ति का नाश होता है। वैशाली के रतन सुत्त के संगायन के समय भगवान बुद्ध कहते हैं कि कलछी भर भात के दान से मैंने किसी को दरिद्र होते नहीं देखा लेकिन कलछी भर भात के दान के पुण्यफल के रूप में मैंने दरिद्रों को सम्राट होते देखा है। सांसारिक और पारमार्थिक जगत के गणित बड़े विपरीत हैं। सांसारिक गणित कहता है कि देने से घटता है, जबकि बुद्ध का पारमार्थिक गणित कहता है कि न देने से घटता है, देने से बढ़ता है। वैशाली में ही वज्जिगणराज्य को उन्नति के सात नियमों में भगवान बुद्ध एक नियम सुपात्रों को दान-मान-आश्रम देने को भी उपदेशित करते हैं कि इसके अनुपालन से उन्नति होती है।
राजगृह में सीगाल नामक युवक को सम्पत्ति अर्जित करने का महत्वपूर्ण उपाय का उपदेश करते हुए बुद्ध कहते हैं कि सम्पत्ति मधुमक्खी की तरह क्रमशः अर्जित करनी चाहिए, ऐसी सम्पत्ति चिरस्थायी होती है। ये नियम उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण अनुस्मारक है, रिमाइण्डर हैं, जो शेयर, लॉटरी, सट्टा, जुआ इत्यादि के द्वारा रातों-रात अमीर बनने का प्रयास करते हैं। ऐसे साधनों से अर्जित सम्पत्ति का आकस्मिक क्षय भी होता है। शेयर मार्केट के उतार-चढ़ाव के साथ बढ़ती हुई हत्याओं-आत्महत्याओं की घटनाओं की भी इसी आलोक में देखे जाने की जरूरत है। दुनिया की आर्थिक मंदी का सर्वाधिक प्रभाव शेयर बाजार, सेंसेक्स, सट्टे पर ही पड़ता है, जबकि क्रमशः सम्पत्ति अर्जित करने वाले व्यक्ति, समाज, संस्थान, देश मंदी से अधिक प्रभावित नहीं होते।
कौशल नरेश प्रसेनजित भगवान बुद्ध से अपने राज्य में अपराध रोकने के उपाय पूछते हैं। कौशल जनपद में ही अंगुलिमाल नामक दुर्दान्त हत्यारा भी था। भगवान राजा प्रसेनजित को उपदेशित करते हैं कि युवकों को शिल्प आदि कलाएं सिखा कर उन्हें रोजगार दें। आज भी अपराधों का मुख्य कारण शिक्षित बेरोजगार युवक हैं। कर्करपत्र नामक कोलियों के निगम में दीघजाणु नामक युवक को व्यग्घपज्ज सुत्त का संगायन करते हुए भगवान बुद्ध सम्पत्ति संवर्धन के चार उपाय बताते हैं- उत्थानपाद सम्पदा, आरक्षसम्पदा, समजीविता, कल्याणमित्रता।
भगवान बुद्ध युवक दीघजाणु को एक ऐसे तालाब की उपमा बताते हैं, जिसमें पानी आने के चार मार्ग हैं और पानी बहने के चार मार्ग हैं। पानी आने के मार्ग आय के साधन के रूप में हैं। पानी बहने के मार्ग व्यय के रूप में हैं। सम्पत्ति अपव्यय के कारणों में भगवान मुख्य कारण मदिरापान, परस्त्रीगमन, अकुशल मित्रों की संगति, अत्यधिक मनोरंजन में लिप्तता इत्यादि बताते हैं। अपव्यय के मार्गों को रोकना तालाब से पानी बाहर जाने के मार्गों को रोकने के समान है और आय के सम्यक उपायों पर प्रयास करना उत्थानपाद सम्पदा का संरक्षण है। इन उपायों से सम्पत्ति क्रमशः बढ़ती है, जो पीढ़ियों तक भरण-पोषण का कारण बनती है। समजीविता के अंग में भगवान बुद्ध दो कीमती बातें बताते हैं- एक, व्यय आय से अधिक नहीं होनी चाहिए। दूसरा, अर्जित सम्पत्ति के चार हिस्से करने चाहिए। दो हिस्से, अपने व परिवार के भरण-पोषण के लिए उपयोग करना चाहिए, जिसमें से अल्पांश दान के लिए अनिवार्यतः उपयोग करना चाहिए। शेष दो हिस्सों में से एक हिस्सा अपने व्यवसाय में पुनर्निवेश करना चाहिए और चैथा हिस्सा आकस्मिक आवश्यकताओं, दुर्दिनों के लिए बचा कर रखना चाहिए।
अर्थ प्रबंधन के बुद्ध के इन सिद्धांतों के आलोक में अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की मंदी को देखे जाने की जरूरत है। स्टैण्डर्ड एन्ड यूजर्स संस्था द्वारा अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग डाउन करने के उपरान्त उजागर हो पाया है कि अमेरिका आय से अधिक खर्च करता है, इसीलिए ऋणग्रषित है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा सार्वजनिक रूप से भारत व चीन को उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति स्वीकार रहे हैं और अमेरिका का प्रबल प्रतिद्वंदी मान रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं भारत बुद्ध की भूमि है और चीन की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बुद्ध का धम्म है। इतिहास गवाह है कि जिस कालखंड में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, वह काल बुद्ध का है। भारत के प्रज्ञावान संविधान निर्माता ने स्वतंत्र भारत को पुनः बौद्ध प्रतीक दिये हैं- तिरंगे झण्डे के मध्य में बुद्ध का धम्म चक्र है, भारत की राजमुद्रा पर अशोक स्तम्भ चिन्हित है, जो कि बौद्ध प्रतीक है और महामहिम राष्ट्रपति के सिंहासन के ऊपर बुद्ध का सिद्धांत अंकित है, धम्मचक्र पवत्तनाय। आर्थिक मंदी का शेयर बाजार, स्टॉक एक्सचेंज, सेंसेक्स पर जो भी प्रभाव पड़े, लेकिन भारत की आधारभूत अर्थव्यवस्था अप्रभावित रहनी है और ग्रामीणजन इस बयार से अछूते रहते हैं, क्योंकि भारत के मूल्यों में बुद्ध के सिद्धांत व्याप्त है। वैश्विक आर्थिक मंदी की पृष्ठभूमि में ही भारत के फिर से सोने की चिड़िया बनने की भूमिका भी निहित है।
इसके पूर्व अतिथियों को संग्रहालय की ओर उप निदेशक डॉ. यशवन्त सिंह राठौर ने सिंदूर पौधा एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित करते हुए आभार व्यक्त किया। सोमवार के कार्यशाला की जानकारी देते हुए बताया कि प्रथम सत्र में ‘‘ मथुरा की बौद्ध कला ” विषय पर प्रोफेसर डाॅ. सुजाता गौतम, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, बीएचयू, वाराणसी तथा दूसरे सत्र में ‘‘ पुरातात्विक साक्ष्यों के परिपेक्ष्य में संस्कृति और सभ्यता ‘‘ विषय पर डाॅ. अनिल कुमार वाजपेयी, प्राचार्य, अमरनाथ गर्ल्स डिग्री कालेज, मथुरा का व्याख्यान होगा।
इस अवसर पर प्रमुख रूप प्रमुख रूप से जातक कथा विशेषज्ञ डॉक्टर जसबीर चावला, डॉ.प्रमोद कुमार त्रिपाठी, शिवनाथ, रीता श्रीवास्तव, सुषमा श्रीवास्तव, वैभव सिंह, नितेश कुमार सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
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