“CET के नाम पर कोचिंग माफिया: हरियाणा में शिक्षा का बढ़ता सौदा”

“कुकुरमुत्तों की तरह उगते कोचिंग सेंटर: CET या लूट की नई राह?”

“CET का चक्रव्यूह और कोचिंग का जाल

हरियाणा में CET परीक्षा लागू होने के बाद जिस रफ्तार से कोचिंग सेंटर गली–गली उग आए हैं, वह न केवल शिक्षा के व्यवसायीकरण का प्रमाण है, बल्कि बेरोजगार युवाओं की मजबूरी का क्रूर दोहन भी है। बिना किसी नियमन, मान्यता या गुणवत्ता के ये संस्थान बच्चों का भविष्य बेचने में लगे हैं। सरकार को इस पर तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और शिक्षा को सेवा के रूप में स्थापित करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।
हरियाणा जैसे राज्य में जहां युवाओं की सबसे बड़ी चिंता बेरोजगारी है, वहां जब सरकार ने CET (Common Eligibility Test) जैसे साझा प्रवेश परीक्षा की घोषणा की, तो यह एक सुनहरे अवसर की तरह सामने आया। परंतु इस व्यवस्था ने कोचिंग माफिया को जो मौका दिया, वह अब शिक्षा की जड़ों को खोखला कर रहा है। गांव-गांव, शहर-शहर ‘CET Specialist’ के नाम पर खुले हजारों कोचिंग संस्थानों ने शिक्षा को व्यापार और छात्रों को ग्राहक बना दिया है।

शिक्षा के नाम पर छल

CET ने जैसे ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, वैसे ही कोचिंग सेंटरों की बाढ़ आ गई। हर गली-मोहल्ले में बिना किसी अनुभव या विषय विशेषज्ञता के लोग “सरकारी नौकरी की गारंटी” का सपना बेचने लगे। उनके पोस्टर-होर्डिंग्स “100% सफलता का दावा”, “पहले बैच से चयनित विद्यार्थी” जैसी भ्रामक सूचनाओं से भरे होते हैं। हकीकत यह है कि इनमें से अधिकांश संस्थान न पंजीकृत हैं, न मान्यता प्राप्त, न ही उनके पास प्रशिक्षित शिक्षक हैं।

बेरोजगार युवाओं की मजबूरी

राज्य में बेरोजगारी दर देश में सबसे अधिक है। युवा सरकार की ओर देख रहा है, लेकिन उसे रास्ता केवल कोचिंग सेंटरों के माध्यम से दिखाया जाता है। एक मध्यम वर्गीय या ग्रामीण छात्र 20–30 हज़ार रुपये की भारी-भरकम फीस भरता है, किताबें और टेस्ट सीरीज़ अलग से लेता है, और महीने भर के भीतर उसे समझ आ जाता है कि वह सिर्फ एक और ‘ग्राहक’ था, ‘विद्यार्थी’ नहीं।

शिक्षा या धोखाधड़ी?

इन कोचिंग संस्थानों में न तो कोई सिलेबस की स्पष्टता होती है, न ही परीक्षा की तैयारी की वैज्ञानिक योजना। केवल पुरानी सरकारी परीक्षाओं के रट्टा आधारित प्रश्न, कुछ पीडीएफ नोट्स और मॉक टेस्ट के नाम पर दिखावा। छात्र दिन भर का समय और हज़ारों रुपये खर्च कर केवल भ्रम के घेरे में फंस जाता है।

सरकार की भूमिका और विफलता

शिक्षा विभाग या परीक्षा प्राधिकरण की ओर से कोई स्पष्ट गाइडलाइन या निगरानी तंत्र नहीं है कि कौन-सा संस्थान चलाने की अनुमति प्राप्त है, कौन शिक्षक योग्य है। न कोई लाइसेंस प्रणाली है, न शिकायत निवारण तंत्र। सरकार CET लागू करती है, लेकिन उससे जुड़ी कोचिंग माफिया की जवाबदेही से आंखें मूंद लेती है।

क्या कोचिंग ज़रूरी है?

सवाल यह है कि क्या सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए कोचिंग अनिवार्य हो चुकी है? अगर हां, तो क्या यह सरकार की शिक्षा प्रणाली की विफलता का प्रमाण नहीं? और अगर नहीं, तो फिर कोचिंग संस्थानों को छात्रों को “भविष्य की गारंटी” देने का अधिकार किसने दिया?

शिक्षा का अर्थ बदल रहा है

आज शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान, विवेक, और सेवा का भाव नहीं रहा। अब शिक्षा ‘इंवेस्टमेंट’ है और नौकरी उसका ‘रिटर्न’। और इस सोच को सबसे ज़्यादा बढ़ावा मिला है कोचिंग उद्योग ने। “CET क्लियर कराओ, फिर ग्रुप-C पक्की” – इस तरह के नारों ने युवाओं की ऊर्जा और उत्सुकता को सिर्फ एक पंक्ति की परीक्षा में सीमित कर दिया है।

जब शिक्षा व्यापार बन जाती है…

शिक्षा जब व्यापार बनती है तो उसका सबसे बड़ा नुकसान गरीब और ग्रामीण छात्र उठाते हैं। उनके पास न अतिरिक्त संसाधन होते हैं, न विकल्प। वह सोचता है कि फीस भर ली तो शायद नौकरी पक्की, लेकिन यह ‘शायद’ ही उसका सबसे बड़ा धोखा बन जाता है।

समाधान क्या हो?

कोचिंग संस्थानों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए
गुणवत्ता, शिक्षक योग्यता, शुल्क की सीमा तय हो।

सरकारी पोर्टल पर मान्यता प्राप्त कोचिंग सेंटरों की सूची प्रकाशित हो
– छात्रों को जानकारी हो कि कहां दाखिला लेना सुरक्षित है।

सरकार CET की तैयारी के लिए फ्री ऑनलाइन कंटेंट उपलब्ध कराए
E-Vidya पोर्टल, YouTube चैनल, मुफ्त मॉक टेस्ट की व्यवस्था।

शिकायत तंत्र लागू हो
जहां छात्र गलत विज्ञापन या गुमराह करने की शिकायत कर सके।

शिक्षकों की योग्यता की जांच हो
कोई भी व्यक्ति केवल व्यापारिक मंशा से शिक्षण न कर सके।

कोचिंग संस्थानों पर
टैक्स और सामाजिक ऑडिट लागू हो
जिससे शिक्षा पारदर्शी और जवाबदेह बने।

भविष्य की राह

हरियाणा जैसे राज्य में CET एक सही पहल हो सकती थी यदि उसके साथ नियोजित तैयारी और पारदर्शिता जुड़ी होती। लेकिन वर्तमान में यह कोचिंग माफिया के लिए ‘सुनहरा अवसर’ बन गया है और छात्रों के लिए एक ‘कठिन धोखा’।
समय की मांग है कि सरकार केवल परीक्षा आयोजित करने तक सीमित न रहे, बल्कि उसकी तैयारी, संसाधन और उससे जुड़े व्यावसायिक शोषण पर भी निगरानी रखे। शिक्षा को एक सेवा की तरह देखना चाहिए, न कि बाज़ार का उत्पाद।
“शिक्षा संकल्प है, सौदा नहीं। प्रतियोगिता संघर्ष है, शिकार नहीं। कोचिंग सुविधा हो, मजबूरी नहीं।”

डॉ. सत्यवान सौरभ

Editor CP pandey

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