भारत के नौनिहाल कूड़े की ढेर व ठेले पर अपना बचपन तलाशते आते नजर
बाल मजदूरो से मजदूरी कराकर उनके अधिकारो और भविष्य को खतरा
महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। जिन नन्हे नन्हे हाथों में कापी, किताब और पेंसिल होनी चाहिए उन्ही हाथों में आज टोकरी और फावड़ा देखा जा रहा है। चाय की दुकानों, होटल ढाबा पर ये भारत के नौ निहाल जिनके हाथों में देश की बागडोर होगी सर्दी गर्मी और बरसात में अथक परिश्रम करते देखे जाते हैं। जहां एक तरफ देश में सरकार बाल श्रमिक विद्या व, उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना एकीकृत बाल सुरक्षा की शुरूआत करके बाल श्रमिको के भविष्य सवारने के लिए करोड़ों रुपए पानी में बहा रही है. वहीं, जमीनी सच्चाई तो कुछ और ही बया कर रही है। बाल श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम 1986 की धारा 2 के अनुसार 14 वर्ष से कम बालक बालिका बाल श्रमिक माने जाते है 14 से 18 वर्ष के बच्चो को काम करने की अनुमति है लेकिन उन्हे खतरनाक व्यवसायों में काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रियाओ मे उनके रोजगार पर रोक लगाकर बच्चो के अधिकारो और कल्याण की रक्षा करना है। और प्रत्येक 12 जून को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, विश्व भर में आई एलओ घटकों और साझेदारों के साथ मिलकर विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाता है। इसके लिए बाल मजदूरों से मजदूरी कराने वाले लोगों के खिलाफ जुर्माना और सजा का प्रावधान है। लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण बाल श्रमिक मोटरसाइकिल रिपेयरिंग से लेकर होटलों , चाय-नाश्ता या किराना दुकानों शराब व बियर की दुकानो के समीप लगे ठेलो पर बाल श्रमिकों को काम करते देखा जा रहा है। यही नहीं कई बच्चे कूड़े की ढेर पर अपना बचपन तलाशते देखे जाते हैं। बाल श्रम उन्मूलन के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई गई हैं। यहां तक कि उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए उनके लिए निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था की गई हैं। बाल श्रम रोकने के लिए कानून बनाकर दोषी लोगों को दंडित करने का प्रावधान भी बना, लेकिन इसका अपेक्षित परिणाम अब तक सामने नजर नहीं आ पा रहा है। लोग बाल मजदूर से खुलेआम काम करा रहे हैं, क्योंकि छोटे बच्चे कम मजदूरी पर काम करते हैं। इतना करने के बाद भी उसे उस काम के बदले में कम मजदूरी मिलती है। ऐसे में बाल मजदूर शोषण के शिकार हो रहें हैं। बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में प्रशासन ठोस कार्रवाई करने के बजाय महज खानापूर्ति कर अपने कर्तव्य का इति श्री कर लेता है। प्रशासन के अधिकारी कभी कभार बाल श्रमिकों को मुक्त करते नजर आते हैं। नौतनवां तहसील क्षेत्र के खनुआ चौराहा, गांधी चौक, अस्पताल चौराहा, रेलवे स्टेशन चौराहा, बनेलिया चौराहा, हरदी डाली, सेमरातर, सोनौली कस्बे में अवस्थित मिठाई, चाय, चाट पकौड़ी, किराना, मोटर रिपेयरिंग, मिनिरल वाटर सप्लाई, आदि दुकानों पर बाल श्रमिक काम करते हमेशा नजर आते हैं जबकि जिम्मेदारों का इन दुकानों पर अक्सर आना जाना लगा रहता है। और कुछ ही दूरी पर तहसील और थाना दोनों है, लेकिन सब कुछ देखते हुए भी अनदेखा कर निकल जाते हैं।
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