Saturday, December 20, 2025
Homeउत्तर प्रदेशअंकों की दौड़ से आगे—शिक्षा में संस्कारों की कमी और समाज पर...

अंकों की दौड़ से आगे—शिक्षा में संस्कारों की कमी और समाज पर उसका असर

आज के भारत में शिक्षा को सफलता की कुंजी माना जाता है, जहाँ अच्छे अंक, नामी संस्थान और ऊँचा वेतन ही उपलब्धि का पैमाना बन चुके हैं। स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक पढ़ाई का मुख्य उद्देश्य रोजगार तक सिमटता जा रहा है। लेकिन अंकों की दौड़ से आगे—शिक्षा में संस्कारों की कमी और समाज पर उसका असर अब एक गंभीर सामाजिक प्रश्न बन चुका है। बढ़ती हिंसा, असहिष्णुता, नैतिक पतन और सामाजिक विघटन इस ओर संकेत करते हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली ज्ञान तो दे रही है, पर मानवीय मूल्य नहीं।

सीमित होती शिक्षा की परिभाषा
वास्तविक शिक्षा केवल परीक्षा पास करने तक सीमित नहीं होती। यह व्यक्ति की सोच, आचरण और जिम्मेदारी को गढ़ती है। वर्तमान व्यवस्था में रटंत विद्या और तीव्र प्रतिस्पर्धा छात्रों में तनाव, आत्मकेंद्रित व्यवहार और नैतिक भ्रम को जन्म दे रही है। संस्कारों के बिना अर्जित ज्ञान कई बार समाज के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है।

संस्कार और चरित्र निर्माण
संस्कार सही-गलत की पहचान कराते हैं। ईमानदारी, अनुशासन, सहानुभूति और सहिष्णुता जैसे गुण परिवार और विद्यालय के संयुक्त प्रयास से विकसित होते हैं। जब इन मूल्यों को शिक्षा से अलग कर दिया जाता है, तब चरित्र निर्माण अधूरा रह जाता है।

मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता
समय की मांग है कि पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, जीवन कौशल, सामुदायिक सेवा और पर्यावरणीय चेतना को अनिवार्य किया जाए। शिक्षक केवल पाठ पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि आदर्श प्रस्तुत करने वाले मार्गदर्शक बनें।

डिजिटल युग की चुनौती
तकनीक ने जानकारी सुलभ की है, पर विवेक का संकट भी बढ़ाया है। सोशल मीडिया के दौर में शिक्षा का दायित्व है कि वह जिम्मेदार डिजिटल नागरिक तैयार करे।
किताबी ज्ञान करियर बनाता है, जबकि संस्कार चरित्र। अंकों की दौड़ से आगे—शिक्षा में संस्कारों की कमी और समाज पर उसका असर समझकर ही एक संवेदनशील, जिम्मेदार और सशक्त समाज का निर्माण संभव है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments