
ग्रीष्म और वर्षा ऋतु के दौरान नदियों, पोखरों, तालाबों में डूबने के कारण होने वाले जनहानि को रोकने के दिए उपाय
मऊ ( राष्ट्र की परम्परा ) अपर जिलाधिकारी सत्यप्रिय सिंह ने बताया कि ग्रीष्म और वर्षा ऋतु के दौरान नदियों, पोखरों, तालाबों, कुओं इत्यादि में डूबने के कारण अधिक जनहानि देखी जाती है। प्रदेश में डूबने से होने वाली जनहानि के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया तद्नुसार पाया गया कि लगभग 45.7% जनहानि 20 वर्ष तक की आयु वर्ग तथा 18.4% जनहानि 21 से 30 वर्ष की आयु वर्ग में है तथा अधिकतर (529.%) जन हानियों नदियों एवं तालाबों में स्नान करते समय हुई है।
उन्होंने बताया कि डूबने के कारण होने वाली जनहानि को न्यूनतम करने के लिए जनमानस को अधिक से अधिक जागरूक करने के उद्देश्य से सावधानी एवं बचाव के उपाय दिये गए है-
अल्प आयु के बच्चो को जल स्रोत के पास खेलते समय सावधानी पूर्वक निगरानी तथा उन्हे कभी भी अकेले कुआँ, नदी, झील, तालाब, पोखर, नहर नाला, गड्ढ़ा, जलप्रपात या अन्य किसी जल स्रोत के समीप न जाने देना।
तैराकी कौशल के अभाव में कुओं, नदी, झील, तालाब, पोखर, नहर नाला, गड्ढा, जलप्रपात या अन्य किसी जल स्रोत में नहीं जाना। नदी, नहर, तालाब, पोखर या अन्य किसी जल स्रोत के पास चेतावनी बोर्ड लगाना जिसमें सुरक्षा-बचाव निर्देश एवं संकेत अंकित हो एवं इसका अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
डूबने से बचाव हेतु बच्चो की भेद्यता, त्योहारों के सभ्य संवेदनशील स्थानों और घाटों पर जागरूकता एवं निगरानी तन्त्र स्थापित करना तथा क्या करे और क्या न करे का विभिन्न माध्यमों से लोगों को जागरूक किया जाना।
संवेदनशील स्थानों पर समुदाय के पारंपरिक ज्ञान को जागरूकता बढाने में शामिल करे।
स्कूली बच्चों को जल सुरक्षा, जोखिम न्यूनीकरण एवं प्राथमिक उपचार के उपाय सिखाए।
अतः डूबने के कारण होने वाली जनहानि की रोकथाम एवं जोखिम को न्यूनतम किए जाने हेतु उपाध्यक्ष उ०प्र० राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा दिए गए निर्देशों के दृष्टिगत संवेदनशील स्थानों पर सावधानी एवं बचाव के उल्लिखित उपायों का अनुपालन अवश्य करें।
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