भरे बसन्त मेँ हुआ
पतझड़ का अहसास,
गमगीन मौसम हुआ
गया हास-परिहास।
टोने-टोटके,बिधि-बिधान
सभी हो गये फेल,
देवी-देवताओं के माथे से
उठा अन्धविश्वास।
घर-आँगन, देहरी-दीवारें
सभी हो गये सूने,
पल भर मेँ ही टूट गयी
कई माह से बँधी जो आस।
घिग्घी उसकी बँधी रह गयी
चाहा था जब चिल्लाना,
खँजर ताने खड़े हैं सिर पर
जब देखी वह आवाक्।
थर-थर काँपे डर के मारे
मूक हो गयी माँ की ममता,
सन्नाटे में डूब गया
पलभर में बदला हालात।
जाने कहाँ उड़े सुख के बादल
बसन्ती हवा भी बनी आँधियाँ,
तनी भृकुटियाँ करा रही हैं
तूफानों का आभास।
पलभर में क्या हुआ अचानक
समझ न पाये ‘श्रीश’
क्या कुसूर है उस बेटी का ?
जन्मी है जो आज ।।
उमेश कुमार पटेल ‘श्रीश’
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