
सत्ता की सियासत में सुलग रही शिवपुर की ज़मीन, प्रशासनिक आदेश भी बेमानी
बलिया(राष्ट्र की परम्परा)
“जिस ज़मीन पर खून-पसीना बहाया, आज उसी पर खड़ा होना भी गुनाह बन गया है” — कुछ इसी पीड़ा से गुज़र रहा है सुखपुरा थाना क्षेत्र के शिवपुर गांव का दलित परिवार। पप्पू पासवान अपने पुश्तैनी ज़मीन पर कब्ज़ा पाने के लिए वर्षों से प्रशासनिक गलियारों में भटक रहा है, लेकिन न तो न्याय मिल सका और न ही सुरक्षा।
शिवपुर के इस जमीनी विवाद ने अब सामाजिक व राजनीतिक रंग भी पकड़ लिया है। पप्पू पासवान का आरोप है कि जब भी वे अपने ज़मीन को कब्ज़ा मुक्त कराने जाते हैं, विपक्षी गुट हमलावर हो जाता है। बीते दिनों ऐसी ही घटना में पुलिस की मौजूदगी में ही दलित परिवार पर हमला हुआ। हालात इतने बिगड़े कि डायल 112 को मौके पर पहुंचना पड़ा। इसके बाद दोनों पक्षों को भारी पुलिस बल के साथ थाने लाया गया और दूसरे दिन दोनों का चालान कर दिया गया।
दिलचस्प बात यह है कि बांसडीह के उपजिलाधिकारी ने पप्पू पासवान की जमीन पर से अवैध कब्जा हटाने के लिए लिखित आदेश पहले ही जारी कर दिया है, बावजूद इसके ज़मीन अभी तक कब्जा मुक्त नहीं कराई जा सकी है। दलित परिवार का कहना है कि उनके वैध अधिकार को कुचलने के लिए इस विवाद को जानबूझकर साम्प्रदायिकता का रंग दिया जा रहा है, जिससे प्रशासन भी असहज होकर कार्रवाई से बच रहा है।
इस मामले में सुखपुरा थानाध्यक्ष सुशील कुमार दूबे ने बताया कि यह राजस्व विवाद है और काफी समय से लंबित है। पुलिस मौके पर पहुंची थी और दोनों पक्षों को महिला पुलिस की मौजूदगी में थाने लाया गया था। महिला से जुड़े आरोप निराधार हैं। जल्द ही उच्च अधिकारियों के निर्देश पर विवाद का समाधान किया जाएगा।
लेकिन बड़ा सवाल यह है — जब न्यायिक आदेश मौजूद है, तो फिर ज़मीन अब तक कब्जा मुक्त क्यों नहीं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रशासनिक सुस्ती और राजनीतिक चालबाज़ी के बीच पिस रहा है एक दलित का हक
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