July 6, 2025

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धूमधाम से मनाया गया अन्नकूट महोत्सव

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)l जनपद मुख्यालय स्थित श्री तिरुपति बालाजी भक्ति वाटिका, कसया रोड में अन्नकूट महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया।इस अवसर पर एडीएम राजेंद्र सिंह व सीडीओ रविंद्र कुमार शामिल हुए। जिसमें श्रीरामानुजाचार्य जी ने बताया कि गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि, गोवर्धन पूजा शुक्ल पक्ष के कार्तिक माह में मनाया जाता है। इस त्यौहार के मनाने के पीछे भगवान श्रीकृष्ण के समय से जुड़ी हुई पौराणिक कथा भी है, इस वजह से इसका और विशेष महत्व है इस पर्व को हमारे देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। श्रीरामानुजाचार्य जी ने बताया कि,गोवर्धन पूजा अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र के घमंड को चूर किया।और सभी ब्रज वासियों को बारिश से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अर्थात छोटी उंगली पर उठा लिया था। मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पर्वत के नीचे ब्रज वासियों ने 7 दिन बिताए थे। उस समय सभी ब्रजवासी अन्न और फल एकत्रित करके और एक साथ मिल-बैठ कर खाते थे। ऐसा माना जाता है कि, संकट के समय में भी भोजन बहुत स्वादिष्ट होता था। जिसमें श्रीकृष्ण भी साथ में सभी के साथ मिलकर खाते थे। तभी से इसे अन्नकूट प्रसाद के रूप में माने जाने लगा। अभी मान्यता है कि लोग अब गोवर्धन पूजा में भोग लगाने के लिए जो प्रसाद बनाते हैं। उसे अन्नकूट उत्सव के रूप में मनाया जाता है।गोवर्धन पर्वत को भोग लगाकर इस प्रसाद को फिर खाते हैं। आपको बता दें कि,अन्नकूट शब्द का अर्थ अन्न का मिश्रण होता है इसके कार्य से सभी लोग पूजन के लिए ढेर सारे पकवान बनाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाते हैं आपको बता दें कि, अन्नकूट गोवर्धन पूजा के दिन एक और विशेष महत्व होता है की,भगवान के लिए अन्नकूट प्रसाद में कई सारी सब्जियों को मिलाकर पकवान बनाया जाता है।इसके बाद भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाया जाता है ऐसा माना जाता है कि अन्नकूट प्रसाद से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं और तत्पश्चात जो भोग लगे हुए प्रसाद होते हैं यह सभी लोग भगवान के भोग लगे हुए प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस अवसर पर सकैङों संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे है जिसमें प्रशान्त जी (गोलू स्वामी) बडे उपाध्याय, प्रदीप, नीरज कृष्ण शास्त्री, बालकृष्ण हरिहर प्रसाद वरनवाल, श्रवण वरनवाल, शेषनाथ मिश्र आदि भक्त शामिल रहे ।