Tuesday, October 14, 2025
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अमेरिकन जॉब्स फर्स्ट”रणनीति बनाम सामाजिक योजनाएं स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा के लिए अधिक फंडिंग प्राथमिकता नतीजा “सरकारी शटडाउन”

अमेरिका में सरकारी शटडाउन- वैश्विक आर्थिक तंत्र, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और बहुपक्षीय समझौतों पर भी गहरा असर डालता है

ट्रंप भले ही पूरी दुनियाँ में टैरिफ लगाकर पैसे कमाने की कोशिश कर रहे हैं,लेकिन आज अमेरिका कीअर्थव्यवस्था संभवतःठीक नहीं है?- एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

गोंदिया-वैश्विक स्तरपरअमेरिका जिसे दुनियाँ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक शक्तियों का प्रतीक माना जाता है, वहां “सरकारी शटडाउन” जैसी स्थिति समय-समय पर उत्पन्न होती रहती है।यह केवल प्रशासनिक ठहराव नहीं होता, बल्कि वैश्विक आर्थिक तंत्र, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और बहुपक्षीय समझौतों पर भी गहरा असर डालता है। हाल ही में ट्रंप प्रशासन के दौर में एक बार फिर से यह शटडाउन सामने आया है। इसके पीछे केवल सरकारी खर्चों के बिल पर संसद (कांग्रेस) में सहमति न बन पाने की वजह नहीं है,बल्कि अमेरिकी लोकतांत्रिक ढांचे की गहरी खींचतान भी जुड़ी हुई है।ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान तीन बार शटडाउन हुआ था। 1980 के दशक में रोनाल्ड रीगन कार्यकाल में 8 बार शटडाउन हुआ था। अमेरिका के इतिहास में सबसे लंबा शटडाउन ट्रंप के पिछले कार्यकाल में ही हुआ था जो 35 दिन चला था।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं,कि ट्रंप भले ही पूरी दुनियाँ में टैरिफ लगाकर पैसे कमाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन आज अमेरिका की अर्थव्यवस्था संभवतःठीक नहीं है।

अमेरिका में महंगाई ज्यादा है, अर्थव्यवस्था की विकास दर धीमी है। दुनियाँ में सबसे ज्यादा कर्ज आज अमेरिका पर है। अमेरिका पर दुनियाँ में कुल कर्ज का करीब 35 पर्सेंट हिस्सा है। आज अमेरिका पर 3 हजार 200 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है।चूँकि अमेरिका में शटडाउन लगा हुआ है।
साथियों बात अगर हम अमेरिका में सरकारी शट डाउन की स्थिति की करें तो,अमेरिका में सरकार ने काम करना बंद कर दिया है। क्योंकि ट्रंप सरकार के पास काम करने के लिए पैसे नहीं है।इसीलिए अमेरिका में सरकारी ऑफिस बंद हो रहे हैं और सरकारी कर्मचारियों को बिना सैलरी छुट्टी पर भेजा जा रहा है।दरअसल अमेरिकी सरकार को चलाने के लिए हर साल बजट पास करना जरूरी होता है। इस बजट के पास होने के बाद ही सरकारी कर्मचारियों को वेतन मिलता है। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप इस बिल को पास नहीं करा पाए है। बिल को पास करने के लिए सीनेट में 60 वोटों की जरूरत होती है। बिल के समर्थन में 55 और विरोध में 45 वोट पड़े। एक तरह से अमेरिकी संसद में राष्ट्रपति ट्रंप की हार है। बिल के पास नहीं होने से सरकार को मिलने वाला पैसा रोक दिया जाता है। इसके बाद अमेरिका में गैर जरुरी सरकारी कामकाज बंद हो जाता है और इसे शटडाउन कहा जाता है।शटडाउन होने से यह असर होगा कि,अमेरिकी सरकार अपने खर्चों को घटाएगी। गैर जरुरी सेवाएं और ऑफिस बंद हो जाएंगे। करीब 40 लाख लोगों की सैलरी पर असर होगा। बड़ी संख्या में लोगों की छंटनी होगी।शटडाउन अगर लंबे समय तक चलता है तो इकोनॉमी भी असर होगा। शटडाउन के दौरान मेडिकल सेवा, सीमा सुरक्षा और हवाई यातायात जैसी जरूरी सेवाएं जारी रहती है। अमेरिका में पिछले 50 साल में फंडिंग बिल अटकने की वजह से 20 बार शटडाउन हुआ है,इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इसआर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे”अमेरिकन जॉब्स फर्स्ट” रणनीति बनाम सामाजिक योजनाएं,स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा के लिए अधिक फंडिंग प्राथमिकता नतीजा “सरकारी शटडाउन”।


साथियों बात अगर हम अमेरिका में शटडाउन क्यों हुआ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समझने की करें तो,अमेरिका की संघीय सरकार का बजट हर साल कांग्रेस (हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स और सेनेट) से पास होना आवश्यक होता है। लेकिन कई बार सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच नीतिगत मतभेद इतने बढ़ जाते हैं कि बजट अथवा अस्थायी फंडिंग बिल (कंटिन्यूग रिसोलूशन) पारित नहीं हो पाता। इसी के चलते सरकारी एजेंसियों के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने या योजनाओं को चलाने के लिए धन समाप्त हो जाता है।यही स्थिति “शटडाउन” कहलाती है।हाल ही में शटडाउन की स्थिति इसलिए बनी क्योंकि ट्रंप प्रशासन द्वारा प्रस्तुत बजट और विपक्षी डेमोक्रेट्स की मांगों में सामंजस्य नहीं बैठ पाया।ट्रंप,अमेरिका- मैक्सिको सीमा पर सख्त आव्रजन नीति और “अमेरिकन जॉब्स फर्स्ट” रणनीति को बजट में प्राथमिकता दे रहे थे, जबकि विपक्ष सामाजिक योजनाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के लिए अधिक फंडिंग चाहता था। नतीजा यह हुआ कि बजट पर सहमति नहीं बनी और सरकारी मशीनरी ठप पड़ गई।
साथियों बात अगर हम अमेरिका में ‘सरकारी शटडाउन’ की स्थिति कब कहलाती है? इसको समझने की करें तो”शटडाउन” की परिभाषा अमेरिकी राजनीतिक प्रणाली से जुड़ी है। जब कांग्रेस बजट या अस्थायी खर्च विधेयक पास नहीं करती, तब सरकार के पास “नॉन- एसेंशियल सर्विसेज” के लिए धन खत्म हो जाता है।इसके परिणाम स्वरूप :लाखों सरकारी कर्मचारी या तो “बिना वेतन” घर बैठने के लिए मजबूर हो जाते हैं या उन्हें “फरलो” पर भेज दिया जाता है।राष्ट्रीय उद्यान,म्यूजियम, रिसर्च लैब्स, और कई तरह की सेवाएँ बंद हो जाती हैं।केवल”एसेंशियल सर्विसेज” जैसे,सेना, पुलिस, आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएँ और हवाई यातायात नियंत्रण सीमित स्तर पर चलते रहते हैं।यदि शटडाउन लंबे समय तक जारी रहता है तो अर्थव्यवस्था की गति पर भारी असर पड़ता है।साधारण शब्दों में, जब सरकार के पास कर्मचारियों को वेतन देने और योजनाओं को चलाने के लिए “कानूनी स्वीकृत धन” नहीं होता, तो वही स्थिति “सरकारी शटडाउन” कहलाती है।
साथियों बात अगर हमग्लोबल शटडाउन का खतरा- किसका मीटर डाउन होने वाला है? इसको समझने की करें तो, अमेरिका की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसका डॉलर वैश्विक रिज़र्व करंसी है। इसलिए जब अमेरिका में शटडाउन होता है, तो इसका प्रभाव सीमित रूप से ही सही लेकिन पूरे विश्व पर पड़ता है।(1) वित्तीय बाजार पर असर- अमेरिकी शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है, डॉलर कमजोर पड़ सकता है और सोना जैसी सुरक्षित संपत्तियों में निवेश बढ़ जाता है।(2) वैश्विक सप्लाई चेन-जब अमेरिकी प्रशासनिक एजेंसियाँ बंद हो जाती हैं,तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार अनुमोदन, आयात-निर्यात क्लीयरेंस और सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ प्रभावित होती हैं।(3) विकासशील देशों पर दबाव- वे देश जिनकी अर्थव्यवस्था अमेरिकी निवेश या सहायता पर निर्भर है,उन्हें सबसे ज्यादा झटका लगता है।(4) ग्लोबल शटडाउन का रूपक- यदि अमेरिकी शटडाउन लंबा खिंचता है, तो इससे विश्व अर्थव्यवस्था की गति मंद पड़ सकती है।यह”ग्लोबल शटडाउन” जैसा असर डालता है, यानी पूरे सिस्टम का मीटर धीरे-धीरे डाउन होने लगता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि यह शटडाउन लंबा चलता है तो आईएमफ, वर्ल्ड बैंक और डब्लूटीओ जैसी संस्थाओं की कार्यशैली पर भी अप्रत्यक्ष दबाव पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिका इन संस्थाओं में सबसे बड़ा दाता है।


साथियों बात अगर हम भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर असर को समझने की करें तोभारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ वर्षों से व्यापार समझौते (ट्रेड डील) पर बातचीत जारी है। इसमें कृषि, सेवा क्षेत्र, डेटा ट्रांसफर, दवा उद्योग और डिजिटल बाजार से जुड़े कई बिंदु शामिल हैं। शटडाउन के कारण इन वार्ताओं पर भी असर पड़ सकता है।(1) प्रशासनिक रुकावट-अमेरिकी व्यापार विभाग और संबंधित एजेंसियों के कामकाज ठप होने से बातचीत की गति धीमी हो सकती है।(2)राजनीतिक अनिश्चितता – भारत यह समझने में असमंजस की स्थिति में है कि अमेरिकी नीति अगले कुछ महीनों में किस दिशा में जाएगी।(3) निवेश पर असर-अमेरिकी कंपनियाँ भारत में निवेश के फैसले स्थगित कर सकती हैं क्योंकि उन्हें अपने घरेलू हालात स्पष्ट होने तक इंतजार करना होगा।(4)रणनीतिक साझेदारी- हालांकि भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी (जैसे रक्षा और टेक्नोलॉजी सहयोग) इतनी मजबूत है कि अल्पकालिक शटडाउन से टूटने वाली नहीं है,लेकिन अल्पावधि में इसके नकारात्मक संकेत ज़रूर मिल सकते हैं।इसलिए कहा जा सकता है कि शटडाउन भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता की रफ्तार को धीमा कर देगा, लेकिन इसे पूरी तरह रोक नहीं पाएगा।
साथियों बात अगर हमअमेरिका में विपक्ष के पास इतने अधिकार कैसे आए कि ट्रंप का सिस्टम शटडाउन कर दिया? इसको समझने की करें तो अमेरिका का लोकतांत्रिक ढांचा “चेकस एंड बैलेंसस” के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें राष्ट्रपति (एग्जीक्यूटिव),कांग्रेस (लेजिस्लेचर) और न्यायपालिका (जुडीशियरी) -तीनों शाखाओं को समान अधिकार और परस्पर नियंत्रण की शक्ति दी गई है।(1)कांग्रेस की शक्ति-बजट और कराधान से जुड़े सभी निर्णय कांग्रेस के हाथ में होते हैं।राष्ट्रपति केवल प्रस्ताव दे सकता है, लेकिन अंतिम स्वीकृति कांग्रेस ही देती है।(2)विपक्ष की भूमिका-यदि हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स या सीनेट में विपक्ष के पास बहुमत है, तो वह राष्ट्रपति के बजट प्रस्ताव को रोक सकता है।(3)ट्रंप के मामले में-डेमोक्रेट्स ने सामाजिक कल्याण योजनाओं और पर्यावरणीय मुद्दों पर अधिक बजट की मांग की, जबकि ट्रंप “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडा को प्राथमिकता दे रहे थे। सहमति न बनने पर विपक्ष ने बजट को पारित होने से रोक दिया, जिससे शटडाउन हो गया।(4) लोकतंत्र का सार-यह स्थिति दर्शाती है कि अमेरिकी लोकतंत्र में विपक्ष केवल आलोचक नहीं है, बल्कि वह शासन की दिशा बदलने और रोकने की सटीक शक्ति भी रखता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि,अमेरिका में शटडाउन केवल एक प्रशासनिक समस्या नहीं है, बल्कि यह विश्व अर्थव्यवस्था और वैश्विक राजनीति पर असर डालने वाला बड़ा घटनाक्रम है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि किसी भी लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए विपक्ष कितना शक्तिशाली हो सकता है। भारत के लिए यह स्थिति अवसर और चुनौती दोनों है-एक ओर भारत को अमेरिका की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी आर्थिक नीतियों को मजबूत करना होगा, वहीं दूसरी ओर यह भारत को अधिक आत्मनिर्भर बनने का भी अवसर दे रहे हैँ।

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