पति की रक्षा और सौभाग्य के लिए करवा चौथ व्रत का रहस्य
प्रस्तुति-अनुराधा
भारत में पारंपरिक त्यौहारों और व्रतों की संस्कृति सदियों पुरानी है। इनमें से एक महत्वपूर्ण व्रत है करवा चौथ, जिसे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना के लिए किया जाता है। करवा चौथ न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह पति-पत्नी के प्रेम और श्रद्धा को भी दर्शाता है।
करवा चौथ का धार्मिक महत्व
भारतीय धर्मग्रंथों और पुराणों में गणेशजी की पूजा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। किसी भी शुभ कार्य या व्रत का प्रारंभ गणेशपूजा से होता है, क्योंकि गणेशजी को विघ्नहर्ता और अनादि देव माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव और पार्वती ने अपने विवाह के समय भी सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा की थी। इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए करवा चौथ के दिन भी व्रती महिलाओं को दिन की शुरुआत गणेशजी के पूजन से करनी चाहिए।
व्रत के दिन व्रती महिला मन में दृढ़ संकल्प करती है कि वह संपूर्ण दिन निराहार रहेगी और चंद्रमा के दर्शन से पूर्व निर्जल व्रत पूरा करेगी। इस दिन विशेष रूप से घर की दीवार पर गोबर और गेरू की स्याही से गणेश, शिव, पार्वती, कार्तिकेय तथा वटवृक्ष की आकृति बनाई जाती है। वटवृक्ष पर मानवाकृति बनाकर उसके हाथ में छलनी भी दिखाई जाती है। इसके पास उदित होते हुए चांद का चित्रित रूप रखा जाता है।
करवा चौथ की पूजा विधि
पूजन के समय दीवार पर बनाई गई प्रतिमा के नीचे दो करवे (तांबे, पीतल या मिट्टी से निर्मित) में जल भरकर रखें। करवे के गले में नारों से सजावट कर सिंदूर से रंगा जाता है। करवे की टोंटी में सरई की सींक लगाई जाती है। इसके ऊपर चावल, सुपारी और लड्डू रखकर उसे नैवेद्य के रूप में अर्पित किया जाता है।
इसके अलावा, व्रती महिला खीर, पूड़ी, चावल और उड़द की पीठी से बने पकवान, ऋतु फल जैसे केला, नारंगी, सिंघाड़ा और गन्ना भी अर्पित करती है। व्रत कथा के अंत में करवे को विशेष रूप से दाहिनी और बायीं दिशा में घुमा कर स्थापित किया जाता है। इस प्रक्रिया को करवा फेरना कहते हैं। विधिपूर्वक पूजन करने से व्रती पर भगवान गणेश की कृपा, पति की लंबी आयु और अखण्ड सौभाग्य प्राप्त होता है।
करवा चौथ की पौराणिक कथाएँ
करवा माता और मगर की कथा
प्राचीन काल में करवा नामक एक पतिव्रता महिला अपने पति के साथ नदी के किनारे गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति स्नान के दौरान मगर के द्वारा पकड़ा गया। मगर करवा को बार-बार पुकारता रहा। करवा तुरंत भागी और मगर को कच्चे धागे से बाँधकर यमराज के पास ले गई। उसने यमराज से कहा कि अगर आप इसे दंडित नहीं करेंगे तो मैं आपको श्राप दूँगी। यमराज डर गए और करवा की आज्ञा अनुसार मगर को नरक भेज दिया और अपने पति को दीर्घायु प्रदान की। इस कथा से स्पष्ट होता है कि करवा चौथ का व्रत पति की सुरक्षा और सौभाग्य की रक्षा का प्रतीक है।
द्रौपदी और अर्जुन की कथा
महाभारत में एक प्रसंग में द्रौपदी ने नीलगिरि पर्वत पर तपस्या करते समय भगवान कृष्ण से सलाह ली। उन्होंने पूछा कि गृहस्थ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का निवारण कैसे किया जाए। श्रीकृष्ण ने बताया कि करवा चौथ का व्रत छोटी-मोटी परेशानियों को दूर करने वाला है और पित्त प्रकोप को भी शांत करता है।
ब्राह्मण कन्या की कथा
एक धर्मपरायण ब्राह्मण की एक पुत्री ने कार्तिक की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखा। वह निराहार रहकर चंद्रोदय तक व्रत में लगी रही। जब उसकी भरी हुई भोजन की इच्छा को समझते हुए उसके भाई ने उसे पहले भोजन करने को कहा, तब उसने व्रत नहीं तोड़ा। इस दौरान उसका पति असामयिक रूप से मर गया। देवयोग से इन्द्राणी ने उसे सलाह दी कि करवा चौथ का व्रत संपूर्ण विधि से, शिव, पार्वती, गणेश और चंद्रमा का पूजन कर, बारह महीने तक पालन करने से पति की लंबी आयु और सौभाग्य प्राप्त होता है।
करवा चौथ का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
करवा चौथ न केवल धार्मिक व्रत है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के प्रेम, समर्पण और पारिवारिक संबंधों को भी दर्शाता है। इस दिन महिलाएँ सज-धजकर अपने घरों में व्रत करती हैं, जिससे परिवार में उत्साह और श्रद्धा का माहौल बनता है। यह व्रत महिलाओं को धैर्य, संयम और आत्म-नियंत्रण सिखाता है।
करवा चौथ का आध्यात्मिक संदेश
करवा चौथ का व्रत एक संदेश देता है कि सच्ची भक्ति, प्रेम और विश्वास से सभी विघ्न और बाधाओं को पार किया जा सकता है। यह व्रत हमें सिखाता है कि जीवन में संकट आए तो धैर्य और श्रद्धा के साथ उसका सामना करना चाहिए।
करवा चौथ केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि पति और पत्नी के बीच विश्वास, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। विधिपूर्वक की गई पूजा और व्रत के पालन से न केवल पति की लंबी आयु और सौभाग्य की प्राप्ति होती है, बल्कि व्रती की आत्मिक शांति और मानसिक सन्तोष भी सुनिश्चित होता है।
इस प्रकार करवा चौथ का महत्व, कथाएँ और पूजा विधि भारतीय संस्कृति की धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक धरोहर के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगी।
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