November 21, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

पत्थर में बीज पड़े, न उगता पेंड़

इच्छाएं वह अच्छी हैं जिनके लिए
स्वाभिमान गिरवी नहीं रखना पड़ता है,
मुश्किलों को अपनों के बीच रख दो,
तभी तो कौन अपना है पता चलता है।

इंसान के द्वारा गरीबी और करीबी
दोनों से जो सबक सीखा जाता है,
हर मनुष्य को अंदर से बदलने के
लिये हर तरह से मजबूर करता है।

कटना, पिसना और अंतिम बूँद तक,
निचोड़े जाना गन्ने का स्वभाव होता है,
उससे बेहतर कौन जानता है कि मीठा
होना कितना बड़ा नुक़सान होता है।

फिर भी तो देखिये गन्ना अपना
स्वभाव कभी भी नहीं बदलता है,
वैसे ही मृदुभाषी, सरल व्यक्ति
सदा धैर्य, शांति से काम लेता है।

जब देने के लिए कुछ न हो तो दूसरे
को सम्मान दें, वह बहुत बड़ा दान है,
स्वभाव सूर्य सा होना चाहिए जिसे न
डूबने का ग़म, न उगने का अभिमान है।

काव्य पाठ तोता नहीं करता है,
खग खग की ही भाषा जानता है,
कविता सागर में जो गोता लगाता है,
काव्य-प्रतिभा ईश्वर उसी को देता है।

काव्य हृदय माँ शारद की भेंट है,
फसल उगे जब उपज़ाऊ खेत है,
पत्थर में बीज पड़े, न उगता पेंड़ है,
आदित्य मूर्ख को न ज्ञान का चेत है।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’