Tuesday, December 23, 2025
Homeउत्तर प्रदेशटीबी के इलाज में लापरवाही से बढ़ रहा है ड्रग-प्रतिरोधी टीबी: डीडीयूजीयू...

टीबी के इलाज में लापरवाही से बढ़ रहा है ड्रग-प्रतिरोधी टीबी: डीडीयूजीयू और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के संयुक्त शोध में खुलासा

नवनीत मिश्र
संत कबीर नगर/गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (डीडीयूजीयू) और बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज (बीआरडीएमसी), गोरखपुर के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण शोध में यह खुलासा हुआ है कि टीबी के इलाज में लापरवाही और दवाओं का सही तरीके से सेवन न करने के कारण ड्रग-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी और एक्सडीऑर-टीबी) के मामले बढ़ रहे हैं।
यह संयुक्त शोध संत कबीर नगर सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश के सात जिलों (गोरखपुर, संत कबीर नगर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर और बस्ती) में किया गया। जिससे पता चला कि कई मरीजों में टीबी की दवाएं असर नहीं कर रही हैं। क्योंकि बैक्टीरिया इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो गए हैं। यह शोध टीबी उन्मूलन कार्यक्रम को नई दिशा देगा और इस बीमारी की रोकथाम के लिए नई रणनीतियाँ विकसित करने में मदद करेगा।

शोध दल और प्रमुख निष्कर्ष
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग के सहायक आचार्यडॉ. सुशील कुमार के नेतृत्व में डॉ. अमरेश कुमार सिंह, सह आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, बीआरडी मेडिकल कॉलेज, और शोध छात्रा नंदिनी सिंह, प्राणी विज्ञान विभाग, डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध के मुख्य निष्कर्ष:
• 1253 टीबी संदिग्ध मरीजों के नमूनों की जांच की गई, जिसमें 355 मरीजों में ड्रग-प्रतिरोधी टीबी पाई गई।
• इनमें से 28.6% मरीजों में दूसरी पंक्ति की दवाओं (एसएलडी) के प्रति भी प्रतिरोध पाया गया, जिससे इलाज और कठिन हो गया।
• पुरुषों में इस समस्या का खतरा ज्यादा देखा गया, लेकिन महिलाओं में यह छोटी उम्र में ही सामने आ रहा है।
• पहले से टीबी का इलाज करा चुके मरीजों में दवा प्रतिरोधी टीबी की संभावना अधिक पाई गई।
• सबसे अधिक प्रतिरोधी मामलों का प्रतिशत बस्ती (36.67%), सिद्धार्थनगर (32.55%), गोरखपुर (31.88%) और कुशीनगर (25.64%) जिलों में पाया गया।

क्या है ड्रग-प्रतिरोधी टीबी और क्यों है यह खतरनाक?
टीबी एक गंभीर बीमारी है, जिसका इलाज संभव है, लेकिन यदि मरीज दवाएं अधूरी छोड़ दें या गलत तरीके से लें, तो टीबी के बैक्टीरिया दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं। इसका मतलब यह है कि सामान्य टीबी की दवाएं इन मरीजों पर असर नहीं करतीं और इलाज लंबा, कठिन और महंगा हो जाता है।

ड्रग-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी) और ड्रग-प्रतिरोधी टीबी (एक्सडीआ-टीबी) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जो चिंता का विषय है।

क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
शोध दल के प्रमुख डॉ. सुशील कुमार, सहायक आचार्य, प्राणी विज्ञान विभाग, डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय, ने कहा,
“यह शोध टीबी उन्मूलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मरीजों को दवाओं का सही तरीके से सेवन करना चाहिए, वरना यह बीमारी और घातक हो सकती है।”

वहीं डॉ. अमरेश कुमार सिंह, सह आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, माइक्रोबायोलॉजी, बीआरडी मेडिकल कॉलेज का कहना है कि “इस शोध से साफ है कि यदि हम टीबी की दवाओं का सही और पूरा इस्तेमाल करें, तो इस बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है।”

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन ने कहा कि “यह अध्ययन पूर्वांचल में टीबी के उन्मूलन में मील का पत्थर साबित होगा। हमें लोगों को अधिक जागरूक करने की जरूरत है, ताकि वे सही समय पर इलाज कराएं और दवाओं का पूरा कोर्स लें।”

टीबी को हराने के लिए क्या करें?

  • टीबी का संदेह होने पर तुरंत जांच कराएं।
  • इलाज के दौरान डॉक्टर की बताई गई पूरी दवा को नियमित रूप से लें।
  • बीच में दवा बंद न करें, वरना बीमारी और खतरनाक हो सकती है।
  • साफ-सफाई और सही खानपान का ध्यान रखें, ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहे।

इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यदि टीबी के मरीज इलाज में लापरवाही करेंगे, तो दवाओं का असर खत्म हो सकता है और यह बीमारी और भी खतरनाक रूप ले सकती है। टीबी उन्मूलन के लिए समय पर जांच, सही इलाज और जागरूकता बहुत जरूरी है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments