March 12, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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पर्यटन के दृष्टिकोण से बौद्ध पुरास्थलों का महत्वपूर्ण स्थान: डॉ. पारोमिता शुक्लाबैद्या

राष्ट्रीय व्याख्यान श्रृंखला का चतुर्थ दिवस के व्याख्यान संपन्न

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर में संस्कृति विभाग के तत्वाधान में चल रहे भारतीय संस्कृति अभिरूचि पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सप्त दिवसीय राष्ट्रीय व्याख्यान श्रृंखला का चतुर्थ दिवस शुभारम्भ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया।
व्याख्यान श्रृंखला के प्रथम सत्र की विषय विशेषज्ञ, प्रबंध विद्यापीठ इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू ) नई दिल्ली की पूर्व निदेशक, पर्यटन एवं अतिथि सेवाएं प्रोफेसर डॉ. पारोमिता शुक्लाबैद्या ने मुख्य वक्ता के रूप में ‘‘ पर्यटन के दृष्टिकोण से बौद्ध पुरास्थलों का महत्व ” विषय पर बोलते हुए कहा कि गत 13 फरवरी, 2025 को पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार की रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल जीडीपी का 5 प्रतिशत का कन्ट्रीब्यूशन पर्यटन से हो रहा है। कोविड के दौरान जो पर्यटन उद्योग में गिरावट आयी थी, उसमें तेज गति से सुधार हुआ है। भारत में कुल रोजगार का लगभग 8 प्रतिशत पर्यटन से है।
उन्होंने कि बौद्ध धर्म जो कि विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है, उसकी जन्मभूमि भारत है। जो कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 5वीं शताब्दी ई के मध्य अपने चरमोत्कर्ष पर रहा। व्याख्यान में विश्व के प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों को पर्यटन के दृष्टिकोण से सभी को अवगत कराया। बौद्ध धर्मावलम्बियों के दृष्टिकोण से बोधगया, सारनाथ एवं कुशीनगर तीर्थ स्थल के रूप में उल्लेखनीय है। धार्मिक केन्द्रों के रूप में राजगीर, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, सांची एवं अमरावती महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है।
डॉ. पारोमिता ने बताया कि कला और संस्कृति के दृष्टिकोण से अजन्ता, एलोरा, नालन्दा महाविहार, कार्ले, भाॅंजा, कन्हेरी को रखा जा सकता है। आधुनिक समय के बौद्ध स्थलों के रूप में धर्मशाला, लाहौल, स्पीति, गंगटोक, तवांग आदि स्थलों को रखा जा सकता है।
यूनेस्को द्वारा घोषित भारत के 43 सांस्कृतिक पुरास्थलों में भारत के 5 बौद्ध स्थलों को भी सम्मिलित किया गया है, जिनमें से अजन्ता गुफा (1983), एलोरा गुफा (1983), सांची (1989), बोधगया (2002), नालन्दा महाविहार (2016) प्रमुख हैं।
द्वितीय सत्र के विषय विशेषज्ञ बाबू युगराज सिंह आयुर्वेदिक मेडिकल काॅलेज एवं चिकित्सालय, गोमतीनगर, लखनऊ, सम्बद्ध-महायोगी गुरू गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय, गोरखपुर के कायचिकित्सा विभाग, के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. श्रीप्रकाश ने मुख्य वक्ता के रूप में ‘‘ चिकित्सा आयुर्विज्ञान के विकास में भगवान बुद्ध और उनके धम्म का योगदान ” विषय पर बोलते हुए कहा कि भगवान बुद्ध (563-483 ईसा पूर्व) करुणा के सागर थे, संसार के दुःख को मिटाना अपना परम लक्ष्य मानते थे। बुद्ध को चिकित्सा विज्ञान का काफी ज्ञान था, इसीलिए उनका दूसरा नाम ‘ भैषज्य-गुरु ’ है । तिब्बत, चीन, जापान में बुद्ध की भैषज्य-गुरु के नाम से विशेष मूर्तियां बनी हैं। बुद्ध का पहला धम्म सार्वभौमिक चार आर्य सत्य है- दुख है, दुःख का कारण है, दुःख का निवारण है, दुःख निवारण का मार्ग है’। चिकित्सा विज्ञान में इसका उल्लेख इस प्रकार किया है, बीमारी विद्यमान है, क्योंकि इसका कारण है, दुख से मुक्ति है, क्योंकि इसके तरीके (कारण) हैं। प्राचीन भारत में रोगियों के देखभाल और चिकित्सा हेतु बहुत सारे औषधालय और चिकित्सालय मानव व पशुओं के लिए खोले गए थे, जिसमें से भगवान धन्वंतरि द्वारा संचालित पाटलिपुत्र (पटना) का आरोग्यविहार प्रमुख है। उन्होंने मगध साम्राज्य के सम्राट अजातशत्रु के भारी अवसाद के दुःख को ठीक किया था।
प्राचीन मैन्यूस्क्रीप्टों, शिलालेखों एवं अभिलेखों का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि चिकित्सा विज्ञान के विकास में भगवान बुद्ध एवं उनका धम्म का योगदान का बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद कई बौद्ध संगीतियों का आयोजन करके धम्मादेशों और चिकित्सा विज्ञान को संकलित, व्यवस्थित एवं संरक्षित किया गया। जिसमें मुख्यतः विनय पिटक ‘भैषज्य स्कंधक’ (महा बग्ग-6), मूलसर्वास्तिवाद भैसज्यवस्तु, महासंघिक, संयुक्तनिकाय का धम्मचक्कप्पवत्तन-सुत्त या मज्झिमानिकाय का मालुंक्यपुत्तसुत्त, धम्मपद और मिलिंद पन्हो आदि है । भारत में बौद्ध बिहारों में, बौद्ध भिक्खु संघ द्वारा चिकित्सा विज्ञान विकसित हुआ और बौद्ध महाबिहारों (विश्वविद्यालयों) – जैसे तक्षशिला, नालंदा विक्रमशीला आदि में पाठ्यक्रम का हिस्सा बना जहाँ दुनियाभर से शिक्षार्थी भारत में शिक्षा प्राप्त करने आते थे । बौद्ध बिहारों को चिकित्सा व शिक्षा का प्रमुख केंद्र/ स्थान के रूप में विकसित किया गया था। बुद्ध के इसी योगदान के कारण भारत विश्वगुरु था ।
उन्होंने भगवान बुद्ध के समकालीन और उत्तरोत्तर बहुत से बौद्ध अनुयायियों ने भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में बुद्ध के धम्म के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया है। जिसमें प्रमुख रूप से आत्रेय, अग्निवेश, जीवक, अशोक, नागार्जुन, धन्वन्तरि, चरक, सुश्रुत, बागभट्ट आदि का अभिलेखीय साक्ष्य मिलता है। इस शोध पत्र में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि “ बौद्धिस्ट मेडिसिन एण्ड सर्जरी ” विश्व की एक प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है, जो बौद्धमय प्राचीन भारत (जंबूद्वीप) की अमूल्य धरोहर है और दुनिया की लगभग सभी चिकित्सा पद्धतियों के विकास की धारा का मूल स्रोत है।
अपने सारगर्वित अध्यक्षीय उद्बोधन से डॉ. कुलदीप शुक्ल ने सभागार को लाभांवित कराया।
इसके पूर्व के संग्रहालय उप निदेशक डॉ. यशयवंत सिंह राठौर ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। साथ ही कार्यक्रम की सफलता के लिए डाॅ. यशवन्त सिंह राठौर संग्रहालय उप निदेशक ने सभी का आभार ज्ञापित करते हुए बताया कि रविवार के विषय ‘‘ दुनिया को रोशन करता बौद्ध धम्म एवं बुद्ध के आर्थिक सिद्धान्त ‘‘ विषय पर आचार्य डॉ. राजेश चन्द्रा लखनऊ (भारत सदस्य, विश्व पार्लियामेन्ट एसो0 यू0एस0ए0) का व्याख्यान होगा।
कार्यक्रम का सफल संचालन अनुराग सुमन ने किया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से डॉ. सुजाता, डॉ. प्रमोद कुमार त्रिपाठी, रीता श्रीवास्तव, सुषमा श्रीवास्तव, शिवनाथ, वैभव सिंह सहित शताधिक लोग उपस्थित रहे।

नवनीत मिश्र