सिकन्दरपुर /बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। क्षेत्रीय ग्राम दुहा बिहरा स्थित मठ में आयोजित राजसूय महायज्ञ में गोरखनाथ-गोरखपुर से पधारे स्वामी रामदास महाराज ने व्यासपीठ से सुधी श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि अब व्रज में सर्वत्र कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जा रहा था खुशी में नन्द बाबा धन- धान्य लुटा रहे थे, लोग उन्हें बधाइयाँ दे रहे थे, शिशु का स्वस्तिवाचन और जातकर्म संस्कार हो रहा था, तभी नन्द जी को कन्स वार्षिक कर चुकाने की बात याद आयी। कन्स का आतंक फैल चुका था, वह ढूँढ-ढूँढ़कर नन्हें बच्चों को सफाया करने लगा था। उसने पुतना को भेजा। वह दूध पिलाने के बहाने कृष्ण को मारने के लिए स्तनों में विष लगा रक्खी थी किन्तु स्तनपान के बहाने लाला ने उसे मार डाला। ऐसे ही कन्स प्रेरित शकटासुर, तृणावर्त आदि असुरों के। मारा। वसुदेव जी की प्रेरणा से गर्गाचार्य ने नन्द की गोशाला में कृष्ण बलराम का नामकरण किया। कन्हैया नित्य नयी-नयी लीलायें करते जिन्हें देखने के लिए देवता वृन्द भी लालायित रहते थे। एक दिन मैया की गोद में कन्हैया बैठे थे, मैया माखन बिलो रही थी कि दूध में उफान आ गया, मैया अपने लाला को गोद से उतार आग पर रखे दूध को बचाने दौड़ पड़ी, फिर तो लाला ने गुस्से में मटकी फोड़ दी यह सोचकर कि जब मैं नहीं जन्मा था तो मेरे लिए मनौतियाँ की अब में आ गया हूँ तो दूध ही मुझसे अधिक प्यारा हो गया। मैया ने लाला को ऊखल में बाँध दी। लाला ने एक ही झटके में यमलार्जुन वृक्ष धराशायी कर। शापित नल-कूबर को सद्गति दी। कृपा करने के लिए प्रभु एक बहाना ढूँढते हैं। बड़ा कहा कि मनमोहन तो गोपियों के प्राणाधार ही थे। व्रज की रज का ही महत्व है। ब्रह्माण्ड घाट स्नानाथ गये कन्हैया ने मिट्टी की एक डली उठकर खाली, शिकायत तो मैया ने लाला के कान कान पकड़ डॉटना शुरू किया। सफाई देते कन्हैया ने अपना मुँह खोल मैया को ब्रह्माण्डका दर्शन कराया। मैया ने लाला को हृदय से लगा लिया। ऐसे ही राम ने भी माता कौशल्या को विश्व ब्रह्माण्ड का दर्शन कराया था। भगवान अपने भक्तों पर कृपा तो करते हैं किन्तु उसका अनुभव अभय नहीं कर पाते। हमें प्रभु-कुपा पर विश्वास करना चाहिए। यज्ञस्थल पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सबको समय से जलपान, भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
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