December 26, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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शिक्षा के मंदिर मे चलता कालेधन का कारोबार यह शिक्षा है या व्यापार- प्रतिक संघवी

राजकोट/गुजरात(राष्ट्र की परम्परा)
आजकल जहा देखो वहा शिक्षा का स्तर बहुत गिर रहा है। और लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी जैसी शिक्षा आज से 20 या 30 साल पहले सरकारी स्कूलों में मिलती थी वैसी नहीं मिल रही है। उसका सीधा अर्थ यही हैं कि कही न कही सभी चीजों का निजीकरण के नुकसान अब दिखना चालू हो गया हैं।
अब सही तरह से सोचे तो डिग्री और शिक्षा एक पैसे का खेल बन गया हैं। और हद तो तब हो जाती हैं की जिसने पीएचडी की हो उसने किस विषय पे और किस थीसीश में पीएचडी की डिग्री ली हैं, वह भी पता नहीं। और उससे भी आगे जाए तो एक सीए की हुई लड़की ने शादी होने तक 7500 में जॉब की और वो जॉब न चली जाए इसके लिए माफी भी मांगी। यह सब आंखों देखी और मेरे सहपाठी के साथ घटी हुई सच्ची बाते हैं और वह भी गुजरात में तो आए जानते हैं कि इसकी नींव कहा हैं और क्यों ऐसा हो रहा है।
पहले तो यह शिक्षा का कारोबार कैसे चलता है वह जानना पड़ेगा। ज्यादातर शहरों में अभी प्राइवेट स्कूलों के चलन बढ़ गए है, सामने सरकार ने भी सरकारी स्कूलों पर ध्यान नहीं दिया। अब यह एक शिक्षण संस्थान माफिया में परिवर्तित हो गया हैं। जहां पैसे और बड़ी बड़ी बाते और बहुत सारे मार्क के अलावा कोई चीज नहीं होती है।
पहले यह जानिए कि 20 साल पहले बोर्ड में अव्वल नबर में 1 से 10 होते तो उसमें ज्यादा से ज्यादा 12 से 18 विद्यार्थी होते थे, लेकिन अब वही संख्या 70 से 80 हो गई है। यह भी इस खेल की ही एक कड़ी है। ऐसे बहुत सारे खेल और तालमेल हैं जो पैसे और बड़े बड़े नेताओं और शिक्षण माफिया लोगों और सिस्टम के साथ खेलता रहता हैं।
अब जानते है की ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों एक ट्रस्ट के अंतर्गत आती हैं, और वही ट्रस्ट से सारा संचालन होता है। बस जब आप फीस जमा कराते हो तब ही यह सब कारोबार आपके सामने आ जाता हैं। आप गौर से देखना की वहां स्कूल फिस लिखा है , डोनेशन लिखा हैं या ट्यूशन फिस, ऐसे अलग अलग कितने क्लॉस आगे हो गए है। जैसे की खेल , टूर, आउट डोर वगैरा। तो यह साफ हो गया हैं कि कोई नियम है जिसको ताक पर रखकर पैसे ऐंठने की पूरी छूट मिली है। और वह बस दिन प्रतिदिन इसी कार्य में लगे रहते हैं।
इससे आगे जाए तो कितनी पाठशालाए एसी भी भी है जो अपने शिक्षकों को बैंक से पगार देके वापिस रोकड़ रूप में ले लेती हैं। वह एक शिक्षक की मजबूरी है और यह शिक्षण माफियाओं का डर।! अब इन सब में जो रह जाता है जो छूट जाता हैं वह हैं शिक्षण।
ये सभी शिक्षण माफिया गैंग रोज रोज नए तौर तरीको से पैसे ऐंठने के रास्ते ढूंढते है। और सोची समझी साजिश के तहत लोग इसके शिकार बन गए है। इसमे शिक्षण के मूल भाव गायब हो गया हैं। और बस मार्क्स और स्कूलों की छवि चमकाने के लिए ही शिक्षण रह गया हैं। अब सोचो जिस शिक्षण की नींव हि काले धन और सेटलमेंट करने के लिए बनी हैं वहां पढ़ रहे बच्चो को क्या शिक्षण मिलता होगा?! क्या यह संभव हैं कि जहां शिक्षण संस्थाओ की नींव गलत हो वहा से कोई सही शिक्षा कैसे पा सके।! क्या यह भी संभव हैं कि अगर आगे बढ़ भी गया तो यह नींव जानने के बाद वो आदमी अपने आपको एक सुरक्षित और भ्रष्टाचार मुक्त भारत दे सके। शिक्षण संस्थान में होते शिष्टाचार से भ्रष्टाचार को अगर नहीं रोका गया तो अब नीचे लिखी लाइन ही सब बोलेंगे और कोई भी संस्थानों का कुछ भी महत्व नहीं रहेगा यह पक्का हैं।
सोच समझ के ना की पढ़ाई जिसने, उसने जीवन बिगाड़ दिया।
और सोच समझके की पढ़ाई जिसने, उसने भी क्या उखाड़ लिया।।
बस यही वाक्य अभी 10% केसों में लागू होते दिख रहे हहैं अगर यही व्यवस्था से शिक्षण प्रणाली चली तो वह 90% हो जाएगी।