अहंकारी व्यक्ति ऐसा व्यवहार करने लगता है जिसके कारण स्वयं की अशांति के साथ-साथ संसार की अशांति का भी कारण बन जाता है
बलिया (राष्ट्र की परम्परा)। छठ ब्रत के अवसर पर सिकन्दरपुर में समझती वक्तता – जीवन प्रगति में मनुष्य का अहंकार बहुत बड़ा बाधक होता है। इसके वशीभूत होकर चलने वाला व्यक्ति पतन की ओर ही जाता है। अहंकारी व्यक्ति परमात्मा से दूर हो जाता है और परमात्मा से दूर होने के कारण उसकी पाप प्रवृत्तियां और प्रबल हो जाती हैं। अहंकार के कारण सोचने समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है। व्यक्ति स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है। गलत कार्य में भी उसे सही दिखाई देने लगता है। काम, क्रोध, मोह लोभ सब अहंकार से ही उत्पन्न होते हैं। ऐसे व्यक्ति स्वयं के सिवा किसी को कुछ भी नहीं समझते हैं। संसार का सारा भोग विलास धन संपदा सब वह केवल अपने लिए ही चाहता है। उसकी विषय वासना की तृष्णा कभी पूर्ण नहीं होती है। अहंकारी व्यक्ति ऐसा व्यवहार करने लगता है जिसके कारण स्वयं की अशांति के साथ-साथ संसार की अशांति का भी कारण बन जाता है। अहंकार और लोभ एक दूसरे के परम मित्र हैं। अहंकारी का अहंकार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।साधनसंपन्न व्यक्ति जब अहंकार को ग्रहण करता है तब उसका भविष्य तो भयानक बनता ही है वर्तमान भी ध्वस्त हो जाता है। अहंकार भी दो किस्म का होता है एक तो ऊपर से प्रकट हो जाता है और दूसरे रूप में लोग बड़ी चतुराई से अहंकार को छुपाए रखते हैं ऊपर से बड़े विनम्र और उदार बने रहते हैं। किंतु अंदर ही अंदर उससे पीड़ित रहते हैं। वह अपने परोपकार परमार्थ अथवा दान पुण्य पर पश्चाताप करने लगता हैं और भविष्य के लिए उदारता का द्वार बंद भी कर देते हैं ऐसे अहंकारी को पुण्य का कोई फल नहीं मिलता है। अहंकारी का परमार्थ का कार्य अमृत में विष और पुण्य में पाप का समावेश करने के समान होता है। वैसे तो अहंकारी व्यक्ति अपने सिर पर पाप की गठरी उठाएं कोई पुण्य कार्य कर ही नहीं सकता है। लौकिक उन्नति तथा आत्मिक प्रगति पाने के लिए अहंकार का त्याग सबसे प्रमुख प्रयत्न है। इंसान जब संपन्नता की ओर बढ़ने लगता है तो उसे अहंकार होने लगता है उसे अपनी गलतियां नहीं दिखाई देती है। उसकी आंखों पर अज्ञानता की पट्टी बंधी होती है। यो तो अहंकारी होने के कई कारण हो सकते हैं। जहां अहंकार का वास होता है वहां बुद्धि, विवेक, चतुराई विनम्रता आदि गुण विलुप्त हो जाते हैं। व्यर्थ के अहंकार के कारण वह सभी मनुष्य को तुच्छ समझने लगता है। और सब की राह में बाधक बनकर प्रसन्नता की अनुभूति करता है। हम सभी को विनम्रता रूपी आभूषण को धारण करना चाहिए। अहंकार रुपी आभूषण को त्वरित उतार फेंकना चाहिए। तभी एक स्वस्थ समाज की स्थापना की जा सकती है। अहंकारी व्यक्ति को मानसिक बीमारी से बचाने के लिए उसे वास्तविकता से रूबरू कराना चाहिए ताकि वह व्यक्ति भी खुशहाल जीवन व्यतीत कर सके।
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