
स्नातक के छात्र जितिन मिश्रा और शिवम कुमार की ईमानदारी की चर्चा
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया।
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनियां।।
निदा फ़ाज़ली की ये पंक्तियों को दोहराते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के सहायक आचार्य डॉ. महबूब हसन ने बताया कि शेर चरितार्थ हो गया। एहसास हुआ कि हर तरह की बुराइयों के बावजूद दुनियां अभी भी खूबसूरत और जीने के लायक़ है।
डा. हसन ने बताया कि शनिवार को विभाग आते समय मेरा पर्स जेब से फिसल कर सड़क पर कहीं गिर गया था। लेकिन मुझे ज़रा भी आभास नहीं हुआ।
उन्होंने बताया कि अपने चैंबर में आकर बैठा ही था कि दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक देते हुए ग्रेजुएशन प्रथम सेमेस्टर के दो छात्र जितिन कुमार मिश्रा (इतिहास, राजनीति शास्त्र, अंग्रेज़ी) और शिवम कुमार (राजनीति शास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र) कमरे में दाखिल हुए। बच्चे पर्स में पड़ी आईडी कार्ड की मदद से मुझ तक पहुंच पाए। पर्स में सत्रह हज़ार रूपयों के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण कार्ड थे। दोनों छात्रों की आंखों में ईमानदारी, स्वाभिमान और आत्मविश्वास का जज़्बा झलक रहा था। मैने उन दोनों छात्रों को ढेर सारी दुआओं के साथ विदा किया।
परिसर में छात्रों की ईमानदारी की चर्चा हो रही है और सभी उनकी प्रशंसा करते हुए अन्य के लिए प्रेरक व अनुकरणीय बता रहे हैं।
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