
बलिया( राष्ट्र की परम्परा)। सनातन धर्म तीज त्योहार के समान ही एक प्रमुख पर्व है करवा चौथ। महिलाओं के बीच करवा चौथ के त्योहार का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और खुशियां आती हैं। यह त्योहर देश में पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ मनाया जाता है।इसे करक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस साल करवा चौथ 13अक्टूबर दिन गुरुवार को पडॉ है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मां पार्वती की पूजा करती है और दिनभर निर्जला व्रत करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलती हैं। करवा चौथ के व्रत और पूजा को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं।कहा जाता है कि जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी सावित्री ने उनसे अपने पति के प्राणों की भीख मांगी और निवेदन किया कि वह उसके सुहाग को न लेकर जाएं लेकिन यमराज ने उसकी बात नहीं मानी, जिसके बाद सावित्री ने अन्न जल त्याग दिया और अपने पति के शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगी। पतिव्रता सावित्री के इस तरह विलाप करने से यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से कहा कि वह अपने पति सत्यवान के जीवन की बजाय कोई और वर मांग ले।सावित्री ने यमराज से कहा कि मझे कई संतानों की मां बनने का वर दें और यमराज ने भी हां कह दिया। पतिव्रता होने के नाते सावित्रि अपने पति सत्यवान के अतिरिक्त किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती थी।जिसके बाद यमराज ने वचन में बंधने के कारण सावित्री को सत्यवान का जीवन सौंप दिया। कहा जाता है कि तभी से सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अपने अखंड सौभाग्य के लिए अन्न जल त्यागकर करवा चौथ के दिन व्रत करती हैं। करवा चौथ से जुड़ी एक और किवदंती है द्रौपदी से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या के लिए गए थे और बाकी चारों पांडवों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने यह परेशानी भगवान श्रीकृष्ण को बताई और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा का उपाय पूछा।भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी, जिसके फलस्वरूप अर्जुन सकुशल वापस आए और बाकी पांडवों के सम्मान को भी कोई हानि नहीं हुई। करवा चौथ को लेकर क्षेत्र के बाजारों में मिट्टी के बने करवा के अलावा चलनी आदि की दुकानें सज गई है। इस पूजा में करवा और चलनी का बहुत महत्व होता है।