संत कबीर नगर (राष्ट्र की परम्परा)। जिला कृषि रक्षा अधिकारी शशांक ने बताया कि वर्तमान समय में आम के बागों में प्रायः कीट-रोगों का प्रकोप दिखाई देते हैl जिनके नियंत्रण हेतु मैगों मिली बग- इस कीट व प्रौढ़ मादा सफेद चपटी मोटी अण्डाकार एवं पंखहीन होती है। इसके शिशु कीट और प्रौढ़ मादा कोमल शाखाओं व वृत्तो से रस चूसते है तथा उत्सर्जित चिपचिपे पदार्थ से शूटी मोल्ड फंगस का प्रकोप होता है। इस कीट का पुपेशन अवस्था मिट्टी में पूर्ण होती है। इस कीट के नियंत्रण हेतु वृक्ष के मुख्य तने पर लगभग 1/2 मीटर की ऊंचाई पर 25-30 संमी चौड़ी 400 गेज की पॉलिथीन सीट को पतली सुतली से बांधकर दोनों सिरों को चिकनी मिट्टी से लेप देना चाहिए। जिसमे यह कीट आम पेड़ों पर न चढ़ सके।
उन्होंने बताया कि आम का भुनगा अथवा लस्सी कीट (मैंगो हॉपर) यह एक छोटा तिकोने शरीर वाला आम का सबसे विनाशकारी कीट है। यह कीट आम के बौर से लेकर पेड़ की नई पत्तियों का भी रस चूसता है इस कीट द्वारा छोड़े गए चिपचिपे पदार्थ से सूटी मोल्डफंगस का प्रकोप बढ़ जाना है। जिससे न सिर्फ छोट-छोटे फल नीचे गिर जाते है। बल्कि बड़े फलों की क्वालिटी भी खराब हो जाती है। इससे आम की फसल में 25 से 30 फीसदी का नुकसान होने की आशंका है। इस कीट के नियंत्रण हेतु मेलाथियान 50 ईसी 2 मिलीलीटर या हाइमोथेएट 01 मिलीलीटर या इमीडाक्लोप्रिड 70 प्रतिशत की। मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। शुल्क कीट(स्केल इन्सेक्ट)-इन कीट के शिशु एवं प्रौढ़ मुलायम टहनियों एवं पत्तो की निचली सतह पर सैकड़ों की संख्या में चिपके रहते है तथा रस चूसकर वृक्ष की पत्तियों पर एक प्रकार का चिपचिपा पदार्थ (हनी डियू) जिस पर काली फफूंदी उग जाती है। इस कीट के नियंत्रण हेतु मेलाथियान 50 ईसी 2 मिलीलीटर या डाईमेथोएट 1मिलीलीटर, या इमीडाक्लोकप्रिड 70 प्रतिशत की 1 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि खर्रा रोग (पाउडरी मिल्डयू) – यह रोग फफूंद से उत्पन्न होता है। इसमें पुष्प वृत्त छोटे-छोटे अविकसित फल एवं उनके वृत्त सफेद चूर्ण से ढक जाते है। रोग ग्रसित पुष्प वृत्तों में पुष्प नही आते है तथा छोटे-छोटे फल पीले पड़कर सुखकर गिर जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु घुलनशील सल्फर का 0.2 प्रतिशत घेल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। एंथ्रेक्रोज रोग- यह रोग पत्तियों बौर तथा फलों पर गहरे भूरे धब्बे बनते है जो नमी पाने पर तेजी से फैलते है। इससे पूरी फसल प्रभावित होती है। असके नियंत्रण हेतु कार्बेडाजीम 50 WP प्रतिशत का छिड़काव लाभदायक है। गुम्मा रोग- यह रोग प्रायः लगता है जिसमें पत्तिया पुष्पगुच्छ के रूप में बदल जाती है। पुष्पकलियां वनस्पतिक कलिकाओं में बदल जाती है। रोग ग्रस्त भागो को काटकर जला देना चाहिए। इसके नियंत्रण हेतु नेफ्थलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव 4.5 लीटर पानी मे करना चाहिए।
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