December 3, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

देवी भागवत सुनने मात्र से पाप सूखे वन की भाँति जलकर नष्ट हो जाते है: डॉ. कौशलेन्द्र कृष्ण शास्त्री

बालपुर/गोण्डा(राष्ट्र की परम्परा)। श्री मद् भगवद् फाउंडेशन द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद् देवी भागवत महापुराण एवं रूद्र चंडी महायज्ञ में कथा सुनाते हुए डॉ. कौशलेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने कहा कि श्रीमद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रंथों में महान है। इसके सामने बड़े-बड़े तीर्थ और व्रत नगण्य हैं। इस पुराण के सुनने से पाप सूखे वन की भांति जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को शोक, क्लेश, दु:ख आदि नहीं भोगने पड़ते। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार छंट जाता है। उसी प्रकार देवी भागवत् महापुराण के श्रवण से मनुष्य के सभी कष्ट, व्याधियां और संकोच समाप्त हो जाते हैं, महात्माओं ने सूतजी से देवी भागवत् पुराण के संबंध में ये जिज्ञासाएं रखीं। पवित्र श्रीमद् देवी भागवत् पुराण का आविर्भाव कब हुआ? इसके पठन-पाठन का समय क्या है? इसके श्रवण-पठन से किन-किन कामनाओं की पूर्ति होती है? सर्वप्रथम इसका श्रवण किसने किया? इसके पारायण की विधि क्या है? महर्षि पराशर और देवी सत्यवती के संयोग से श्रीनारायण के अंशावतार देव व्यासजी का जन्म हुआ।व्यासजी ने अपने समय और समाज की स्थिति पहचानते हुए वेदों को चार भागों में विभक्त किया और अपने चार पटु शिष्यों को उनका बोध कराया। इसके पश्चात् वेदाध्ययन के अधिकार से वंचित नर-नारियों एवं मंदबुद्धियों के कल्याण के लिए अट्ठारह पुराणों की रचना की, ताकि वे भी धर्म-पालन में समर्थ हो सकें।
इस आयोजन के यज्ञाचार्य पं. अतुल शास्त्री जी महाराज एवं सहायक पं. सूरज शास्त्री, राकेश शास्त्री एवं मुख्य यजमान राजितराम तथा अंजनी, दिनेश, हेमंत, रविशंकर, सुमित, मोहित, अनिल, राजन, विकास, छिठई बाबा, नीरज जितेंद्र, रजनीश, नवनीत, शोभित अनेक लोग उपस्थित रहे।

भागवत सुनने मात्र से पाप सूखे वन की भाँति जलकर नष्ट हो जाते है: डॉ. कौशलेन्द्र कृष्ण शास्त्री

बालपुर/गोण्डा(राष्ट्र की परम्परा)। श्री मद् भगवद् फाउंडेशन द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद् देवी भागवत महापुराण एवं रूद्र चंडी महायज्ञ में कथा सुनाते हुए डॉ. कौशलेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने कहा कि श्रीमद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों तथा धार्मिक ग्रंथों में महान है। इसके सामने बड़े-बड़े तीर्थ और व्रत नगण्य हैं। इस पुराण के सुनने से पाप सूखे वन की भांति जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को शोक, क्लेश, दु:ख आदि नहीं भोगने पड़ते। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार छंट जाता है। उसी प्रकार देवी भागवत् महापुराण के श्रवण से मनुष्य के सभी कष्ट, व्याधियां और संकोच समाप्त हो जाते हैं, महात्माओं ने सूतजी से देवी भागवत् पुराण के संबंध में ये जिज्ञासाएं रखीं। पवित्र श्रीमद् देवी भागवत् पुराण का आविर्भाव कब हुआ? इसके पठन-पाठन का समय क्या है? इसके श्रवण-पठन से किन-किन कामनाओं की पूर्ति होती है? सर्वप्रथम इसका श्रवण किसने किया? इसके पारायण की विधि क्या है? महर्षि पराशर और देवी सत्यवती के संयोग से श्रीनारायण के अंशावतार देव व्यासजी का जन्म हुआ।व्यासजी ने अपने समय और समाज की स्थिति पहचानते हुए वेदों को चार भागों में विभक्त किया और अपने चार पटु शिष्यों को उनका बोध कराया। इसके पश्चात् वेदाध्ययन के अधिकार से वंचित नर-नारियों एवं मंदबुद्धियों के कल्याण के लिए अट्ठारह पुराणों की रचना की, ताकि वे भी धर्म-पालन में समर्थ हो सकें।
इस आयोजन के यज्ञाचार्य पं. अतुल शास्त्री जी महाराज एवं सहायक पं. सूरज शास्त्री, राकेश शास्त्री एवं मुख्य यजमान राजितराम तथा अंजनी, दिनेश, हेमंत, रविशंकर, सुमित, मोहित, अनिल, राजन, विकास, छिठई बाबा, नीरज जितेंद्र, रजनीश, नवनीत, शोभित अनेक लोग उपस्थित रहे।