जैसे जैसे कच्चा फल पकता जाता है
नर्म होकर उसका रंग बदलने लगता है,
उस फल का स्वाद मीठा हो जाता है,
वही फल सबके खाने योग्य होता है।
हम इंसानों की परिपक्वता की भी कई
निशानी हैं, विनम्रता भी आ जाती है,
भाषा, वाणी संयत मीठी हो जाती है,
आत्मविश्वास की चमक आ जाती है।
जीवन की यात्रा के अनुभव अनजान
राहों की बदलती तस्वीरों से होते हैं,
उन सारी तस्वीरों की पहचान तभी हो
पाती है जब सफ़र तय किये जाते हैं।
इंसान अहंकारी तब हो जाता है जब
औरों को नीचा दिखा ख़ुश होता है,
संस्कारी मानव तो दिल दिमाग़ से
औरों को आदर देकर झुक जाता है।
अक्सर यह देखा जाता है कि सम्पन्न
व्यक्ति से जलने वाले सदा जलते हैं,
जो गरीब होता है उस ऊपर ये हँसते हैं,
पर सच्चे रिश्तों के लिये वे तरसते हैं।
कोई व्यक्ति हमसे कितना बेहतर
है उस की चिंता हमें क्यों करनी है,
प्रतिदिन अपने कार्यों की बेहतरी के
लिये हमें अवश्य चिंता करनी है।
सफलता का ताला भी खुद की सोच
और आचरण की चाभी से खुलता है,
सफलता हासिल कर अहंकार से दूर
आदित्य हमें सहज सरल ही रहना है।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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